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दाता निरंकार करतार, ओ जगत गोसाईं सिरजनहारे

अली हुसैन अशरफ़ी

दाता निरंकार करतार, ओ जगत गोसाईं सिरजनहारे

अली हुसैन अशरफ़ी

MORE BYअली हुसैन अशरफ़ी

    रोचक तथ्य

    یہ خیال ماہ ربیع الاول ۱۳۳۰ ہجری میں بعد زیارت حرمین شریفین و حصول حج اکبر جب سفر شام و بیت المقدس و حلب و مصر وغیرہ کا ارادہ کیا تھا بہ ضرورتِ سامان سفر بحضور رب العزت مقام مدینہ منورہ میں عرض کیا، تیسرے دن حق تعالیٰ نے اپنی قدرت سے پورا سامانِ سفر کر دیا۔

    दाता निरंकार करतार, जगत गोसाईं सिरजनहारे

    दाता निरंकार

    मंगता जो तुम से कुछ माँगे पावे तुरन्त पलक बिन मारे

    दाता निरंकार

    तुमरे गुय्याँ बन के दाता कहाँ मैं जाऊँ किस के द्वारे

    दाता निरंकार

    चिंता कुछ-हो रहे ना मन में सिमरों तुम का साँझ सकारे

    दाता निरंकार

    ध्यान ज्ञान में रहे 'अशरफ़ी' सकल जहाँ से होइके न्यारे

    दाता निरंकार

    स्रोत :
    • पुस्तक : तहाइफ़-ए-अशरफ़ी (पृष्ठ 101)

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