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तोड़ के जाते हैं रिश्ते न निभाने वाले

आस रहबर कलकतवी

तोड़ के जाते हैं रिश्ते न निभाने वाले

आस रहबर कलकतवी

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    तोड़ के जाते हैं रिश्ते निभाने वाले

    याद आते हैं सदा छोड़ के जाने वाले

    थी मोहब्बत की रमक़ उन की निगाहों में कभी

    अब तो आँखें ही दिखाते हैं मिलाने वाले

    हम से उल्फ़त है उन्हें और निभाएँगे वो

    कह के जाते हैं यही प्यार जताने वाले

    ज़िंदगानी मैं करूँ अपनी तिरे नाम मगर

    कह के ये बात बने तुम भी रुलाने वाले

    उस ने गर मेरी मोहब्बत को जलाया है तो

    जल भी सकते हैं किसी रोज़ जलाने वाले

    तुम ने ख़ुशियों में तो हर वक़्त मिरा साथ दिया

    ग़म में क्यूँ छोड़ गए ग़म को मिटाने वाले

    प्यार का दीप मैं हाथों में लिए बैठा हूँ

    क्यूँ नहीं आते हैं अब उस को जलाने वाले

    उन की यादों में है मशग़ूल मिरा दिल हर दम

    और यक़ीं है मुझे आएँगे वो आने वाले

    शे'र-गोई में तू क्यूँ डूब गया है 'रहबर'

    अब तुझे कहते हैं शा'इर ये ज़माने वाले

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