ख़ुदा को याद कर क्यों मुल्तजी है कीमिया-गर से
कि सोना ख़ाक से होता है पैदा ला’ल पत्थर से
ग़ज़ब में जान है हर-दम दुआ’ करता हूँ दावर से
मोहब्बत जाए दिल से यह बला निकले मिरे घर से
मरे पर भी असर देखा ये अपनी अश्कबारी का
बुख़ारात-ए-ज़मीँ उठ उठ के अक्सर गोर पर बरसे
रूलाया हमको क्या-क्या बे-वफ़ा ने मुंह न दिखलाया
हमारी दीदा-ए-तर उम्र-भर दीदार को तरसे
मिरा क़ातिल पिलाएगा मुझे शर्बत शहादत का
ख़बर ये कौन लाया है भरो मुंह उस का शक्कर से
जबीन-ए-यार से अफ़शाँ की देखी ज़र्रा अफ़्शानी
ख़ुशी के फूल झड़ते हैं चिराग़-ए-माह-ए-अनवर से
ना गुज़रे चार दिन भी चैन से उस की मोहब्बत में
बहुत रोए बहुत पीटे बहुत तड़पे बहुत तरसे
कटी बरसात ‘बह्र’ इस साल भी फ़रियाद-ओ-शेवन में
ख़बर हमको नहीं बादल किधर आए किधर बरसे
स्रोत :
- पुस्तक : Asli Guldasta-e-Qawwali (पृष्ठ 15)
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