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जिस राज़ को दुनिया जानती है दुनिया से छुपाता रहता हूँ

बह्ज़ाद लखनवी

जिस राज़ को दुनिया जानती है दुनिया से छुपाता रहता हूँ

बह्ज़ाद लखनवी

MORE BYबह्ज़ाद लखनवी

    जिस राज़ को दुनिया जानती है दुनिया से छुपाता रहता हूँ

    वो होते हैं हर सू जल्वा-नुमा मैं आँख बचाता रहता हूँ

    तुम मुझ से पूछो हाल मिरा मैं अश्क बहाता रहता हूँ

    जो आग नहीं बुझ सकती है वो आग बुझाता रहता हूँ

    हाल उन का मुझे मा'लूम नहीं कुछ और मेरा मफ़्हूम नहीं

    अक्सर ये नज़र से गुज़रा है नज़रों में समाता रहता हूँ

    उस ज़ौक़-ए-तजस्सुस के क़ुर्बां 'आलम से जुदा है राहरवी

    हर गाम ये अपने रहबर को इक राह बताता रहता हूँ

    ये राज़-ओ-नियाज़-ए-मय-ख़ाना क्या समझेगा कोई दीवाना

    वो मुझ को पिलाते रहते हैं मैं उन को पिलाता रहता हूँ

    वो हँसते हैं मैं रोता हूँ है 'इश्क़ में ये कैसा 'आलम

    वो आग लगाते रहते हैं मैं आग बुझाता रहता हूँ

    उल्फ़त की कहानी दुनिया में 'बहज़ाद' कोई सुनता ही नहीं

    ख़ुद अपने ही दिल को अपना ही अफ़्साना सुनाता रहता हूँ

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