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उस का बंदा हूँ जिसे क़िब्ला-नुमा कहते हैं

बहज़ाद लखनवी

उस का बंदा हूँ जिसे क़िब्ला-नुमा कहते हैं

बहज़ाद लखनवी

MORE BYबहज़ाद लखनवी

    उस का बंदा हूँ जिसे क़िब्ला-नुमा कहते हैं

    जिस को अल्फ़ाज़-ए-मोहब्बत में ख़ुदा कहते हैं

    जिस के हर रंग में अंदाज़-ए-मसीहाई है

    जिस के हर तर्ज़ को 'आलम की दवा कहते हैं

    हर नज़र जिस की मुदावा-ए-ग़म-ओ-दर्द-ओ-अलम

    जिस की हर बात को ए'जाज़-नुमा कहते हैं

    जिस के मय-ख़ाने का हर जाम है मस्ती बर लब

    वो वो साक़ी है जिसे होश-रुबा कहते हैं

    जिस के क़दमों पे तसद्दुक़ मेरा सर मेरी जबीं

    जिस के दर को दर-ए-तकमील-ए-वफ़ा कहते हैं

    जिस की हर बात हक़ीक़त है हक़ीक़त की क़सम

    जिस के हर तौर को हम शान-ए-ख़ुदा कहते हैं

    राज़ की बात बता दूँ कि बड़ा राज़ है ये

    उस को 'बहज़ाद' 'अज़ीज़-ए-दोसरा कहते हैं

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