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ये कौन आ रहा है इधर मुस्कुराता

बहज़ाद लखनवी

ये कौन आ रहा है इधर मुस्कुराता

बहज़ाद लखनवी

MORE BYबहज़ाद लखनवी

    ये कौन रहा है इधर मुस्कुराता

    जहान-ए-तमन्ना में हलचल मचाता

    निगाहों में मस्ती क़दम बहके-बहके

    चराग़-ए-मोहब्बत जलाता बुझाता

    हिजाबों में डूबी हुई बे-हिजाबी

    मेरी ज़िंदगी को तमाशा बनाता

    निगाहें पयामी अदाएँ सलामी

    दो 'आलम का मंज़र नज़र को दिखाता

    मुबारक हो मेरी जबीन-ए-वफ़ा को

    हर इक गाम पर एक का'बा बनाता

    फ़ज़ा से बरसने लगी हैं बहारें

    गुलों को तरीक़-ए-तबस्सुम सिखाता

    दो 'आलम को सैराब कर देने वाला

    शराब-ए-मोहब्बत पिलाता बहाता

    कभी मेहर-ए-कामिल कभी क़हर-ए-कामिल

    कभी रुख़ दिखाता कभी रुख़ छुपाता

    शबाब मुकम्मल निगार सरापा

    निगाहों से बचता क़ज़ाओं पे छाता

    ब-ईं ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं ब-ईं रू-ए-अनवर

    निगाहों की बे-चैनियों को लुभाता

    निगाहें झुकाए दो 'आलम पे छाए

    कभी मुझ को खोता कभी मुझ को पाता

    वो रफ़्तार जैसे कि बाद-ए-बहार

    बनाता मिटाता मिटाता बनाता

    फ़ज़ाएँ मो'अत्तर हुई जा रही हैं

    हवाओं को भी निकहतों से बसाता

    ब-हर तौर-ए-कामिल ब-हर रंग-ए-क़ातिल

    जिसे क़त्ल करता उसी को जलाता

    ख़बर ही नहीं मुझ को 'बहज़ाद' अपनी

    ये कौन गया होश मेरे उड़ाता

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