दारू-ए-दर्द-ए-निहाँ राहत-ए-जानी सनमा
दारू-ए-दर्द-ए-निहाँ राहत-ए-जानी सनमा
ईसा मुर्दः-दिलाँ यूसुफ़-ए-सानी सनमा
तेरे सदक़े मिरी जाँ तुझ पे मिरा दिल क़ुर्बां
वारिस-ए-कौन-ओ-मकाँ फ़ख़्र-ए-ज़मानी सनमा
तेरा हर जल्वः है आईनः-ए-असरार-ए-अज़ल
तेरी सूरत में हैं अनवार-ए-मआनी सनमा
दिल के दाग़ों को कलेजे से लगा रक्खा है
कि यही दाग़ तो हैं तेरी निशानी सनमा
तू ही जब क़िस्सः-ए-ग़म से मिरे घबराता है
फिर सुने कौन मिरे ग़म की कहानी सनमा
ता-कुजा अश्क बुझाएँगे मिरे दिल की लगी
फ़ूँके देता है मुझे सोज़-ए-निहानी सनमा
वक़्फ़ सज्द: है तिरे दर पे जबीन-ए-'बेदम'
क़िब्लः-ए-दिल सनमा का'बः-ए-जानी सनमा
- पुस्तक : नूरुल-ऐंन: मुसह्हफ-ए-बेदम (पृष्ठ 92)
- रचनाकार : बेदम शाह वारसी
- प्रकाशन : शेख़ अता मोहम्मद, लहौर (1935)
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