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अपनी हस्ती का अगर वस्फ़ नुमायाँ हो जाए

बेदम शाह वारसी

अपनी हस्ती का अगर वस्फ़ नुमायाँ हो जाए

बेदम शाह वारसी

MORE BYबेदम शाह वारसी

    अपनी हस्ती का अगर वस्फ़ नुमायाँ हो जाए

    आदमी कसरत-ए-अनवार से हैराँ हो जाए

    तुम जो चाहो तो मिरे दर्द का दर्माँ हो जाए

    वर्ना मुश्किल है कि मुश्किल मिरी आसाँ हो जाए

    नमक-पाश तुझे अपनी मलाहत की क़सम

    बात तो जब है कि हर ज़ख़्म नमक-दाँ हो जाए

    देने वाले तुझे देना है तो इतना देदे

    कि मुझे शिकवा-ए-कोताही-ए-दामाँ हो जाए

    स्रोत :
    • पुस्तक : तज़्किरा-ए-शो’रा-ए-उत्तर प्रदेश हिस्सा दउम (पृष्ठ 75)
    • रचनाकार : इरफ़ान अ’ब्बासी

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