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घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

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    घर हुआ गुलशन हुआ सहरा हुआ

    हर जगह मेरा जुनूँ रुस्वा हुआ

    ग़ैरत-ए-अहल-ए-चमन को क्या हुआ

    छोड़ आए आशियाँ जलता हुआ

    हुस्न का चेहरा भी है उतरा हुआ

    आज अपने ग़म का अंदाज़ा हुआ

    पुर्सिश-ए-ग़म आप रहने दीजिए

    ये तमाशा है मिरा देखा हुआ

    ये इमारत तो इबादत-गाह है

    इस जगह इक मय-कद: था क्या हुआ

    ग़म से नाज़ुक ज़ब्त-ए-ग़म की बात है

    ये भी दरिया है मगर ठहरा हुआ

    इस तरह रहबर ने लूटा कारवाँ

    'फ़ना' रहज़न को भी सदमः हुआ

    स्रोत :
    • पुस्तक : फ़ना निज़ामी "फ़न और शख़्सियत" (पृष्ठ 96)
    • रचनाकार : फ़ना निज़ामी
    • प्रकाशन : जिगर अक़ादमी, कानपुर (2003)

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