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नई है बिल्कुल नई है साहेब ये दास्ताँ जो सुना रहा हूँ

फ़क़ीर क़ादरी

नई है बिल्कुल नई है साहेब ये दास्ताँ जो सुना रहा हूँ

फ़क़ीर क़ादरी

MORE BYफ़क़ीर क़ादरी

    नई है बिल्कुल नई है साहेब ये दास्ताँ जो सुना रहा हूँ

    अभी अभी ही बना हूँ बंदा पहले मैं भी ख़ुदा रहा हूँ

    ज़रा ये शम्स-ओ-क़मर से कह दो वो अब शुआ'ओं को भूल जाएँ

    मैं अपने सहरा के ज़र्रे-ज़र्रे को ख़ुद चमकना सिखा रहा हूँ

    वो फ़ख़्र-ए-आदम में इब्न-ए-आदम है मेरी ग़ैरत का ये तक़ाज़ा

    इलाही मुझ को नहीं ज़रूरत मैं अपनी जन्नत बना रहा हूँ

    सरापा ग़म भी हो कैफ़-ओ-मस्ती जिस में हो ये फ़रेब-ए-हस्ती

    जो पाक-तर हो हिर्स-ओ-हवस से मैं ऐसी दुनिया बसा रहा हूँ

    वो कैसी शब थी था कैसा मंज़र किसी को सोते में जगाया

    उसी अदा से उसी अदब से मैं ज़ख़्म अपने जगा रहा हूँ

    कभी जो तन्हाई दे इजाज़त तो 'क़ादरी' ये पयाम देना

    रिंद घबराओ मय-कदे में मैं रहा हूँ मैं रहा हूँ

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