तमन्ना दो दिलों की एक ही मालूम होती है
तमन्ना दो दिलों की एक ही मालूम होती है
अब उन की हर ख़ुशी अपनी ख़ुशी मालूम होती है
दिलों पर सब के इक अफ़्सुर्दगी मालूम होती है
तिरी महफ़िल में ये किस की कमी मालूम होती है
समझ की चाल चल जाता है दीवान: मोहब्बत का
ब-ज़ाहिर वो भी इक दीवानगी मालूम होती है
बजा हँसता है गर हँसता है कोई मेरे जीने पर
मुझे ख़ुद ज़िंदगी अपनी हँसी मालूम होती है
जहाँ क़ुदरत किसी से फेर लेती है नज़र अपनी
वहीं इंसान की बे-माएगी मालूम होती है
यक़ीं मोहकम अज़ाएम आहनी सई-ओ-अमल पैहम
उन्हीं से आदमी की ज़िंदगी मालूम होती है
कमीने रुख़ बदलते हैं हवा पर तो कमीने हैं
शरीफ़ों में ये कमज़ोरी बुरी मालूम होती है
ज़रा ठहरो मिरे आँसू तो पूरे ख़ुश्क होने दो
अभी आँखों में थोड़ी सी नमी मालूम होती है
उधर तो आ ज़रा मुँह चूम लूँ क़ुर्बान हो जाऊँ
अदा-ए-बरहमी भी क्या भली मालूम होती है
यही दिल की लगी क्या जाने क्या क्या रंग लाएगी
अभी तो आप को इक दिल-लगी मालूम होती है
किसी का हर तबस्सुम दिल के हक़ में घाव है ताज़:
पुरानी चोट भी उभरी हुई मालूम होती है
खिलौना है दिल-ए-मजबूर-ए-उलफ़त उन के हाथों का
मोहब्बत की उसी से सादगी मालूम होती है
घसीटे जाते हैं काँटों में उन के चाहने वाले
ख़ुदा जाने मोहब्बत क्यूँ बुरी मालूम होती है
जबीन-ए-शौक़ का जब राब्ता हो उन के क़दमों से
उन्हीं सज्दों में शान-ए-बंदगी मालूम होती है
तसर्रुफ़ दीद के क़ाबिल है 'कामिल' चश्म-ए-साक़ी का
नज़र मिलते ही दुनिया दूसरी मालूम होती है
- पुस्तक : वारदात-ए-कामिल दीवान-ए-कामिल (पृष्ठ 233)
- रचनाकार : कामिल शत्तारी
- प्रकाशन : कामिल अकादमी (1962)
- संस्करण : 4th
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