मैं तिरे डर से रो नहीं सकता
मैं तिरे डर से रो नहीं सकता
गर्द-ए-ग़म दिल से धो नहीं सकता
अश्क यूँ थम रहे हैं मिज़्गाँ पर
कोई मोती पिरो नहीं सकता
शब मिरा शोर-ए-गिर्या सुन के कहा
मैं तो इस ग़ुल में सो नहीं सकता
मस्लहत तर्क-ए-इश्क़ है नासेह
लेक ये हम से हो नहीं सकता
कुछ 'बयाँ' तुख़्म-ए-दोस्ती के सिवा
मज़रा-ए-दिल में बो नहीं सकता
- पुस्तक : दीवान-ए-बयान संकलन: अर्जुमंद आरा (पृष्ठ 86)
- रचनाकार : अहसनुल्लाह ख़ाँ बयान
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिंद) नई दिल्ली (2004)
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