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यूँ बदलने को दुनिया बदलती रही

मीनू बख़्शी

यूँ बदलने को दुनिया बदलती रही

मीनू बख़्शी

MORE BYमीनू बख़्शी

    यूँ बदलने को दुनिया बदलती रही

    मैं तिरे रास्ते ही पे चलती रही

    चाँद निकला सितारे भी चमका किए

    एक मैं ग़म में करवट बदलती रही

    सोज़िश-ए-ग़म से फ़ुर्सत मिली कब मुझे

    था मुक़द्दर में जलना सो जलती रही

    मौसम-ए-हिज्र था जो बदला कभी

    यूँ बदलने को हर रुत बदलती रही

    रू-ब-रू मेरे ये हादिसा भी हुआ

    हर हक़ीक़त फ़साने में ढलती रही

    क्यूँ बनी जान-लेवा मिरी हर अदा

    तेरी हर बात क्यूँ दिल को खलती रही

    तुझ को पाने की हसरत में ज़िंदगी

    उ'म्र भर सूरत-ए-शम्अ' जलती रही

    मोनिस-ए-शाम-ए-हिज्राँ था तेरा ही ग़म

    जान-ए-जाँ मैं उसी से बहलती रही

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