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शिकवः अपने तालेओं की ना-रसाई का करूँ

एहसनुल्लाह ख़ाँ बयान

शिकवः अपने तालेओं की ना-रसाई का करूँ

एहसनुल्लाह ख़ाँ बयान

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    शिकवः अपने तालेओं की ना-रसाई का करूँ

    या गिला शोख़ तेरी बेवफ़ाई का करूँ

    वो कि इक मुद्दत तलक जिस को भला कहता रहा

    आह अब किस मुँह से ज़िक्र उस की बुराई का करूँ

    आब-ए-ज़मज़म से मैं धो लूँ अपनी पेशानी के तईं

    दर पे तब उस के इरादा जब्हा-साई का करूँ

    ख़ूब सी तंबीह करना जुदाई तू मुझे

    गर किसी से फिर कभी क़स्द आश्नाई का करूँ

    गर मुसख़्ख़र होवे वो ख़ुर्शीद-रू मेरा 'बयाँ'

    बादशाही क्या कि मैं दा'वा ख़ुदाई का करूँ

    स्रोत :
    • पुस्तक : दीवान-ए-बयान संकलन: अर्जुमंद आरा (पृष्ठ 110)
    • रचनाकार : अहसनुल्लाह ख़ाँ बयान
    • प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिंद) नई दिल्ली (2004)

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