रौशन है ज़माना मगर उजयारा नहीं है
रौशन है ज़माना मगर उजयारा नहीं है
ताबिश तेरी सूरत का कहीं साया नहीं है
तेरी ही नज़र से हैं बहारों में महक भी
जिस गुल में तेरा नक़्श हो मुरझाया नहीं है
तेरी ही सदा में है शिफ़ा का वो समुंदर
जिस ने तुझे पाया वो कभी हारा नहीं है
दरबार में तेरे ही बसी जिन की तमन्ना
वो शह भी ग़ुलामों में नज़र आया नहीं है
महशर में तेरे दम से उजाला ही उजाला
जिस ने तुझे देखा वो भटक पाया नहीं है
का'बे में है लहराया तिरे नाम का परचम
उस घर में तिरे बिन तो कोई आया नहीं है
महशर में तिरा नाम ही रहमत का सहारा
जिस ने तुझे ठुकराया वो बच पाया नहीं है
तेरी ही सदा में है करम का वो तबस्सुम
जिस ने तुझे अपनाया वो घबराया नहीं है
तेरी ही पनाहों में है अमजद की भी दुनिया
उस दर से कभी वो तो भटक पाया नहीं है
अमजद को तिरे दर से मिला नूर-ए-हक़ीक़त
वर्ना तो कभी दिल ये चमक पाया नहीं है
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