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ज़रा सुनता नहीं कहना किसी का

औघट शाह वारसी

ज़रा सुनता नहीं कहना किसी का

औघट शाह वारसी

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    ज़रा सुनता नहीं कहना किसी का

    दिल-ए-नादाँ को है सौदा किसी का

    हसीनों को जहाँ में कौन पूछे

    ज़माना हो गया शैदा किसी का

    हरम में बुत-कदा में हम को वाइ'ज़

    नज़र आता है इक जल्वः किसी का

    ख़ुदा शाहिद नहीं तक़्सीर मेरी

    हुआ दिल ख़ुद-ब-ख़ुद बंदा किसी का

    सुना है आज-कल दैर-ओ-हरम में

    हुआ करता है फिर चर्चा किसी का

    तसव्वुर में सदा रहता है 'औघट'

    क़द-ए-बाला रुख़-ए-ज़ेबा किसी का

    स्रोत :
    • पुस्तक : फ़ैज़ान-ए-वार्सी अल-मारूफ़ ज़म्ज़मः-ए-क़व्वाली (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : औघट शाह वार्सी
    • प्रकाशन : जय्यद बर्क़ी प्रेस, दिल्ली

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