एक साहिब-ए-दिल का ख़्वाब में कुतिया के पेट में से बच्चों की आवाज़ सुनना- दफ़्तर-ए-पंजुम
रोचक तथ्य
अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब
एक शख़्स चिल्ले में था।ख़्व्वाब में देखा कि एक कुतिया हामिला है। ये रास्ते से चला जा रहा है कि यकायक कुत्ते के बच्चों की आवाज़ सुनी। हालांकि बच्चे कुतिया के पेट में थे उस को इन आवाज़ों पर तअ’ज्जुब हुआ कि कुतिया के पेट में से बच्चों ने आवाज़ क्यूँ-कर दी इसी हैरत में आँख खुल गईं मगर बे-दारी में भी उस की हैरत बढ़ती गई । चिल्ले में कोई और भी ना था कि ता’बीर देकर इस गिरह को खोलता। ला-मुहाला दर्गाह-ए-इलाही में रुजूअ’ किया। उसने अ’र्ज़ की यारब इन आवाज़ों को सुनकर मैं ऐसे अचंभे में पड़ गया हूँ कि इस चिल्ले में तेरे ज़िक्र और तेरी याद से भी ग़फ़लत हो रही है।
इलाही मेरे पंख खोल दे ताकि इस आ’लम-ए-हैरत से बाहर हो जाऊं जवाब में एक फ़रिश्ते की आवाज़ आई और कहा कि ये जाहिलों के बड़ाई करने की मिसाल थी या’नी वो जो आँखें बंद कर के बे-हूदा बकते हैं। कुत्ते के बच्चे अगर पेट में से आवाज़ देने लगें तो सरासर हिमाक़त है। ना वो शिकार कर सकते हैं ना रात को निगहबानी कर सकते हैं। ना उन्होंने भेड़िए को देखा कि उस को भगा सकें ना उन्होंने चोर को देखा कि उस को रोक सकें अपनी हिर्स और सरवरी की तमन्ना में इन जाहिलों का भी यही हाल है कि ग़ौर-ओ-नज़र में कमज़ोर और ज़बान-दराज़ी में शह-ज़ोर हैं।
- पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 169)
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)
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