दर्ज़ी का एक मुद्दई’ तुर्क के कपड़े से टुकड़े चुराना- दफ़्तर-ए-शशुम
रोचक तथ्य
अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब
तुमने नहीं सुना कि कोई शीरीं-गुफ़्तार एक रात यारों में बैठा दर्ज़ियों की शिकायत कर रहा था और लोगों को इस गिरोह की चोरियों के क़िस्से सुना रहा था। उसने अच्छा-ख़ासा दर्ज़ी-नामा पढ़ डाला और ख़िल्क़त उस के अतराफ़ जमा’ हो कर सुनती रही।
सुनने वालों को जिस क़दर दिलचस्पी हो रही थी उसी क़दर वो भी मज़े ले-ले कर बयान कर रहा था बल्कि सरापा हिकायत बन गया था। जब उसने दर्ज़ियों की बहुत सी चोरियों के हालात सुनाए कि ये मक्कार किस-किस तरह लोगों को ठगते और नुक़्सान पहुंचाते हैं तो सुनने वालों में से मुल्क-ए-ख़ता का एक तुर्क उनकी बदमआ’शियों पर बिलकुल आपे से बाहर हो गया।
उसने पूछा कि ऐ दास्तान-गो ये तो बता कि तुम्हारे शहर में कौन सा दर्ज़ी मक्र-ओ-दग़ा में सब का उस्ताद है? उसने कहा कि एक दर्ज़ी पुरशिश नामी बड़ा ज़हर का बुझा हुआ है और हाथ की सफ़ाई में गाहक का क़ातिल है। तुर्क ने कहा कि मैं शर्त करता हूँ कि चाहे वो कितने ही बहाने करे वो मेरे कपड़े में से एक तार भी ना ले सकेगा। लोगों ने कहा अरे भाई तुझसे ज़ियादा होशयार लोग उस से मात खा चुके हैं तू अपनी अ’क़्ल पर धोका ना खा, ऐसा न हो कि तू उस के चाल चक्कर में आ कर बिलकुल लुट जाये, अब तो तुर्क बिफर गया और शर्त लगा कर अपना माल गिरवी रखा और कहने लगा कि अजी क्या नया और क्या पुराना मुझसे वो कुछ चुरा ना सकेगा? शह देने वालों ने और भी तुर्क को बेआपे कर दिया और उसने भी घोड़ा गिरवी रखकर शर्त लगाई कि अगर वो दर्ज़ी मेरा ज़रा सा भी कपड़ा चुरा ले तो ये ताज़ी घोड़ा हार दूँगा, अगर नहीं चुरा सका तो तुमको ऐसा ही घोड़ा मेरे हवाले करना पड़ेगा। ग़रज़ शर्त तय हो गई और तुर्क को मारे पेच-ओ-ताब के रात-भर नींद नहीं आई और इसी ख़्याल में उलझता रहा। सुब्ह होते ही एक अत्लस का कपड़ा बग़ल में दबाया और बाज़ार में उस दग़ाबाज़ की दुकान पर पहुंचा।
दर्ज़ी ने जो उस नव-वारिद गाहक को देखा तो बहुत अदब से खड़े हो कर सलाम किया और ख़ुश-आमदीद कही। तुर्क के मर्तबे से कहीं ज़ियादा ता’ज़ीम से पेश आया यहां तक कि तुर्क के दिल में एक क़िस्म की मुरुवत पैदा हो गई और उसने अपनी इस्तंबोली अत्लस उस के आगे रख दी और कहा कि इस अत्लस की एक क़बा क़ता’ कर जो मैदान-ए-जंग में पहुंचने के लाएक़ हो। ऊपर का हिस्सा तंग हो कर जिस्म पर फंसा हुआ रहे और निचला हिस्सा ज़रा कुशादा रहे और ऐसा कि पैरों में दबने ना पाए। दर्ज़ी ने दोनों आँखों और सीने पर हाथ रखे अ’र्ज़ की कि सरकार मैं हर तरह की ख़िदमत को हाज़िर हूँ। कपड़े को नापा और क़ता’ करने के लिए जगह जगह निशान लगाए और साथ साथ मीठी मीठी बातें करता रहा। बड़े बड़े अमीरों के वाक़िआ’त और उनकी बख़्शिश और इनआ’म और बख़ील के क़िस्से बीच बीच में कहता गया। इन्ही हिकायतों में एक क़िस्सा ऐसा हंसाने वाला सुनाया कि वो तुर्क हंसते हंसते लोट गया।
जब वो इस दास्तान पर हँसने लगा तो उस की छोटी छोटी आँखें और भी बंद हो गईं। दर्ज़ी ने झट एक टुकड़ा कपड़ा का चुरा कर रान के नीचे इस तरह दबा दिया कि सिवा ख़ुदा के उसे कोई ना देख सका और ख़ुदा अगरचे सब चालाकियां देखता है मगर उस की सिफ़त तो सत्तारी है। अलबत्ता अगर हद से ज़ियादा हो जाए तो भांडा फोड़ देता है। ग़रज़ दास्तान के मज़े में वो तुर्क अपने अस्ली क़स्द और दा’वे को भूल गया। किधर की अत्लस कहाँ का दा’वा और कैसी शर्त। वो ठट्ठे और मज़ाक़ में सबसे ग़ाफ़िल हो गया और दर्ज़ी की ख़ुशामद करने लगा कि ख़ुदा के वास्ते एक मज़ाक़ का क़िस्सा और सुनाओ इस से मेरा जी बहल रहा है। दर्ज़ी ने एक बे-इख़्तियार कर देने वाला क़िस्सा सुनाया कि वो मारे क़हक़हों के चुस्त हो गया। दर्ज़ी ने बड़ी सफ़ाई से अत्लस का एक और टुकड़ा नेफ़े में छूपा लिया और तुर्क तो हंसी में ही दीवाना हो रहा था और उसे ज़रा ख़बर ना हुई। इसी तरह तीसरी दफ़ा’ भी उस तुर्क-ए-ख़ताई ने दर-ख़्वास्त की कि बरा-ए-ख़ुदा एक दिल-लगी का क़िस्सा और सुनाओ। उसने फिर एक क़िस्सा सुनाया कि तुर्क फड़क उठा और बिलकुल दर्ज़ी का शिकार हो गया ।तुर्क की आँखें बंद, अ’क़्ल रुख़स्त और होश-ओ-हवास ग़ाएब, मारे क़हक़हों के लोटा जाता था। अब के तीसरी दफ़ा’ फिर उस क़बा के कपड़े में उसे एक पट्टी दर्ज़ी ने चुरा ली क्योंकि तुर्क की हंसी की वजह से चुराने की गुंजाइश काफ़ी मिल गई थी। जब चौथी मर्तबा उस तुर्क ने दर्ज़ी उस्ताद से दिल-लगी का फ़साना सुनाने की ख़्वाहिश की तो दर्ज़ी को उस तर्क के हाल पर रह्म आ गया और कहने लगा सरकार! बस अब दिल-लगी छोड़ो। अगर और क़िस्सा सुनाऊँगा तो आपकी उ’म्र-भर हसरत रह जाएगी।
अब इस क़िस्से का नतीजा सुन ।वो बे-ख़ौफ़ तूही है और ये अ’य्यार दुनिया दर्ज़ी है जो अत्लस की क़बा तक़्वा और नेकी के लिए तुझे सिलवानी थी वो मज़ाक़ और क़हक़हों में बर्बाद हो गई। अत्लस तेरी उ’म्र है। मज़ाक़ और क़हक़हा नफ़्सानी जज़बात हैं। दिन रात क़ैंची हैं और दिल-लगी की रग़बत तेरी ग़फ़लत है। घोड़ा तेरा ईमान है और शैतान घात में लगा हुआ है। लिहाज़ा अपने होश-ओ-हवास ठीक कर और अफ़्साने के ज़ाहिर को छोड़। तेरी उ’म्र की अत्लस को ज़माने की क़ैंची से मक्कार दर्ज़ी टुकड़े टुकड़े कर के चुराए लिए जा रहा है।
- पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 209)
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)
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