मुसलमान,यहूदी और ई’साई का हम-सफ़र होना - दफ़्तर-ए-शशुम
रोचक तथ्य
अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब
ऐ फ़र्ज़ंद ! एक हिकायत सुन ताकि तू ख़ुश-बयानी और हुनर के चक्कर में ना आए। एक सफ़र में यहूदी, मुसलमान और ई’साई हमराह हुए। जब तीनों हमराही किसी मंज़िल पर पहुंचे तो कोई भला आदमी इन मुसाफ़िरों के लिए हलवा लाया। तीनों मुसाफ़िरों के सामने हस-बतन लिल्लाह वो हलवा रख दिया। वो दोनों तो उस रोज़ बद-हज़मी में मुब्तला थे और मुसलमान रोज़े से था। जब नमाज़-ए-शाम का वक़्त आया तो मुसलमान को बहुत भूक लगी मगर साथियों ने कहा कि हमारा पेट तो भरा हुआ है बेहतर है कि आज की रात रख छोड़ें और कल उस को खाएं।
मुसलमान ने कहा, नहीं , उस को ताज़ा ही खा लेना चाहिए। कल तक सब्र कौन करे। उन दोनों ने कहा कि तेरा मक़्सद ये मा’लूम होता है कि तू अकेला खा जाये। उसने कहा कि ऐ दोस्तो हम तीन आदमी हैं। जब इख़्त्लाफ़-ए-राय हो गया तो बेहतर है कि आपस में बांट लें जो चाहे अपना हिस्सा खा ले और जो चाहे उठा रखे मगर वो इस फ़िक्र में थे कि वो मुसलमान रात-भर भूका मरे और ग़म खाता रहे। चूँकि वो ख़ुदा की मर्ज़ी पर साबिर-ओ-शाकिर था उन दोनों की ज़िद देखकर ख़ामोश हो रहा।
पस तीनों सो गए और सुब्ह बेदार हो कर तय्यार हुए। मुँह हाथ धो कर हर एक अपनी अपनी इ’बादत में मशग़ूल हुआ। मुसलमान हो या यहूदी,आतिश-परस्त हो या बुत-परस्त सब का रुख़, उसी सुल्तान-ए-दो-जहाँ की तरफ़ रहता है, बल्कि पत्थर, ख़ाक, पहाड़ और पानी सबको ख़ुदा ही से निस्बत है। अल-क़िस्सा जब ज़रूरियात से फ़ारिग़ हुए तो एक ने बात छेड़ी कि रात को जिसने जो ख़्वाब देखा हो वो बयान करे। जिसका ख़्वाब सबसे बेहतर हो ये हलवा उसी का है ख़्वाह ख़ुद खाए ख़्वाह दूसरों को शरीक करके, क्योंकि जिसकी मा’रिफ़त ज़ियादा हो उस का खाना सब के खाने के बराबर है। उस की पुर-नूर जान सब पर फ़ौक़ियत ले जाती है। बाक़ियों को सिर्फ़ उस की ख़िदमत-गुज़ारी काफ़ी है।
पस यहूदी ने रात को जो कुछ देखा और जहां-जहां फिरा था बयान करना शुरूअ’ किया। उसने कहा कि मैं ख़्वाब में एक तरफ़ चला जा रहा था कि हज़रत-ए-मूसा की रूह से मुलाक़ात हुई। मैं हज़रत के पीछे पीछे कोह-ए-तूर पर पहुंचा। हम तीनों नूर में छुप गए । तीनों साए आफ़्ताब की रौशनी में छुप गए। उसके बा’द उस नूर से एक दरवाज़ा खुला, उस नूर में से एक और नूर फूटा और ये दूसरा नूर फैलता गया। मैं भी मूसा भी और कोह-ए-तूर भी तीनों उस नूर की चमक में गुम हो गए। फिर मैंने देखा कि जब नूर-ए-हक़ ने उस में फूंक मारी तो वो पहाड़ तीन टुकड़े हो गया। एक जो समुंद्र में गिरा तो ज़हर जैसा कड़वा पानी मीठा हो गया। दूसरी शाख़ ज़मीन पर गिरी तो आब-ए-रवां का एक चशमा पैदा हुआ।ख़ुदा की बरकत से पानी सब बीमारियों का इ’लाज है और उस की तीसरी शाख़ जो उड़ी तो का’बे के क़रीब अ’रफ़ात पर गिरी। फिर उस बे-होशी से जो मैं होश में आया तो देखा कि तूर अपनी जगह पर जैसा का वैसा ही है लेकिन वो मूसा के पांव के नीचे बर्फ़ की तरह पिघल रहा था। ना उस की कोई चोटी बाक़ी रही थी ना उस में पथरीलापन था। मारे ख़ौफ़ के पहाड़ ज़मीन के बराबर हो गया था और उस की सारी बुलंदी नशेब में तब्दील हो गई थी। ग़रज़ इसी क़िस्म की बहुत सी बातें उस यहूदी ने बनाइं।
उस के बा’द ई’साई ने कहना शुरूअ’ किया कि मुझे ख़्वाब में हज़रत मसीह का दीदार हुआ। मैं उनके साथ चौथे आसमान पर गया जो इस आफ़ताब का मर्कज़ है। आसमानी क़िलों में ऐसे ऐसे अ’जाइ’बति हैं कि इस दुनिया के अ’जाइबात को उनसे कोई निस्बत नहीं और ये तो हर शख़्स जानता है कि आसमान की अ’ज़मत ज़मीन से ब-दरजहा ज़ियादा है।
आख़िर में मुसलमान की बारी आई तो बहुत कसमसाकर बोला।भाईओ मैं क्या बयान करूँ।मेरे ख़्वाब में तो आज रात को हज़रत मुस्तफ़ा तशरीफ़ लाए। ये रसूलों के बादशाह, दो-जहाँ के फ़ख़्र और हिदायत करने वाले हैं।आपने मुझसे फ़रमाया कि तेरे साथियों में एक तूर को गया। कलीमुल्लाह के साथ इ’श्क़-ए-इलाही में मसरूफ़ हो गया और दूसरे को हाकिम-ए-ज़माना ई’सा अ’लैहिस-सलाम अपने साथ चौथे आसमान पर ले गए, लिहाज़ा ऐ फिसड्डी, तू उठ और ये हलवा खा ले। वो दिनों साहिबान-ए-हुनर तो घोड़े उड़ाते हुए निकल गए और इक़बाल और मर्तबे का परवाना उन्हें मिल गया और फ़रिश्तों से जा मिले, तू निकम्मा अकेला रह गया है। तू इस हलवे के थाल पर ही क़नाअ’त कर।मैंने ऐसे बादशाह-ए-जहान का फ़रमान पाते ही मजबूरन सारी रोटियाँ हलवे के साथ खालीं।
ये सुनकर यहूदी और ई’साई दोनों घबरा कर बोले कि अरे हरीस बे-वक़ूफ़! सच्च कह क्या तू अकेला सारा हलवा खा गया। मुसलमान ने जवाब दिया कि जब मेरे सरकार ने हुक्म दिया तो मेरा क्या हौसला था कि इंकार करता। क्या तू यहूदी होने के बावजूद मूसा के हुक्म से सर-ताबी करेगा? और तू ई’साई हो तो क्या ई’सा के बुरे या भले अहकाम की ता’मील से मुँह फेर सकता है? तो मैं अपने फ़ख़्र-ए-अंबिया के हुक्म से कैसे सरताबी करूँ। मैंने तो वो हलवा ख़ा लिया और अब मगन हूँ। पस उन दोनों ने कहा कि ख़ुदा की क़सम तूने सच्चा ख़्वाब देखा और तूने जो देखा वो हमारे सब ख़्वाबों से भी बेहतर है। तेरा ख़्वाब ऐ’न बेदारी है कि बेदारी में उस का असर अ’याँ है।
- पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 214)
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.