एक बादशाह का मुल्ला को शराब पिलाना - दफ़्तर-ए-शशुम
रोचक तथ्य
अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब
एक बादशाह रंग रैलियों में मस्रूफ़ था कि एक मुल्ला उस के दरवाज़े पर से गुज़रा हुक्म दिया कि उस को महफ़िल में खींच लाओ और ज़बर-दस्ती शराब पिलाओ, पस लोग जबरन उस को महफ़िल में खींच लाए और वो आकर साँप के ज़हर की तरह बिलकुल तुर्श-रू हो बैठा। शराब पेश की तो उसने क़ुबूल ना की और बादशाह और साक़ी दोनों से आँख फेर ली और कहा कि मैं ने उ’म्र-भर कभी शराब नहीं पी। इस शराब पीने से तो ज़हर पीना बेहतर है। बजाए शराब के मुझे ज़हर लाकर दो। बादशाह ने साक़ी से कहा कि ऐ नेक देखता क्या है। ज़रा उस को बे-तकल्लुफ़ तो कर। अ’क़्ल पर भी एक पोशीदा हाकिम है अपनी हिक्मत से आपे से बाहर कर देता है।साक़ी ने मुल्ला को चंद चाँटे लगाए और कहा कि ख़ैर इसी में है कि शराब पियो।चांटों के ख़ौफ़ से वो मुसीबत-ज़दा फ़ौरन शराब पी गया। अब क्या था वो मस्त-ओ-बे-ख़ुद हो कर ऐसा ख़ुश और फूल की तरह खिल गया कि बादशाह की मुसाहिबत और मस्ख़रा-पन करने लगा। इसी हाल में पेशाब के लिए गया। शाही बैत-उल-ख़ला पर भी एक ख़ूबसूरत लौंडी मामूर थी।
मुल्ला ने जो उसे देखा तो शराब के नशे में और भी आपे से बाहर हो गया और लगा उस लौंडी से ख़र-मस्तियाँ करने, उसने ग़ुल मचाया और इधर मुल्ला को वापस आने में देर हुई तो बादशाह ख़ुद उधर गया और ये देखकर कि मुल्ला शर्म-ओ-हया,ज़ुह्द–ओ-तक़्वा सबको छोड़कर ख़ुद उस कनीज़ से दस्त-दराज़ी कर रहा है। सख़्त नाराज़ हुआ। मुल्ला जल्दी से निकल कर फिर महफ़िल में आगया और फ़ौरन शराब का पियाला हाथ में ले लिया। बादशाह दोज़ख़ की तरह आतिश-ए-ग़ज़ब-ओ-आतिश-ए-इंतिक़ाम से भड़कने लगा और मुल्ला के ख़ून का प्यासा हो गया। जब मुल्ला ने देखा कि बादशाह का चेहरा मारे ग़ुस्से के लाल और जाम-ए-ज़हर की तरह तल्ख़ हो गया है तो उसने साक़ी को ललकारा कि ''अरे महफ़िल गर्म करने वाले बैठा क्या देख रहा है उठ और ज़रा उस को बेतकल्लुफ़ तो कर दे!' बादशाह हंस पड़ा और कहा कि ऐ शख़्स मैं तो बे-तकल्लुफ़ हूँ, जा वो छोकरी तुझे बख़्श दी।
- पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 229)
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)
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