हक़-तआ’ ला का इ’ज़राईल से ख़िताब कि तुझे किस पर रह्म आया - दफ़्तर-ए-शशुम
रोचक तथ्य
अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब
हक़-तआ’ला ने इ’ज़राईल से पूछा कि ऐ हमारी सुनाई पहुंचाने वाले सब मरने वालों में तुझे किस पर रह्म आया?और किस की मौत पर तेरा दिल ज़ियादा दर्द-मंद हुआ? इ’ज़राईल ने अ’र्ज़ की कि एक दिन एक कश्ती को जो तेज़ मौज पर बह रही थी, मैंने तेरे हुक्म से तोड़ दिया और वो रेज़ा रेज़ा हो गई उस के बा’द तूने हुक्म दिया कि इन सबकी जान क़ब्ज़ कर और सिर्फ़ एक औ’रत और एक बच्चे को छोड़ दे। चुनांचे वो दोनों एक तख़्ते पर रह गए। मौजें उस तख़्ते को आगे बढ़ाती रहीं।
जब हवा ने उस तख़्ते को किनारे लगा दिया तो उन दोनों के बच जाने से मेरा दिल बहुत ख़ुश हुआ। फिर तूने फ़रमाया कि माँ की रूह क़ब्ज़ कर और बच्चे को तन्हा छोड़ दे जब मैंने उस बच्चे को माँ से जुदा किया है तो तू ख़ुद ही जानता है कि मुझे किस क़दर तकलीफ़ हुई ।उस के बा’द मैंने कितने सख़्त ग़म-ओ-मातम देखे लेकिन उस बच्चे की तन्हाई का ग़म मैं भूल ना सका। ख़ुदा ने फ़रमाया कि मैंने अपने फ़ज़्ल से मौज को हुक्म दिया कि उसे एक घने जंगल में डाल दे। उस जंगल में निहायत शफ़्फ़ाफ़ मीठे पानी के चश्मे बहते थे। उसी जगह मैंने उस बच्चे को परवरिश किया। मैंने वहां लाखों ख़ुश-नवा परिंदे भेजे जो हर वक़्त चहचहाते और नए नए राग अलापते रहते थे।
मैंने चम्बेली के पत्तों में उस का बिस्तर बनाया और उस को हर क़िस्म के ख़ौफ़-ओ-ख़तर से महफ़ूज़ कर दिया। मैंने आफ़्ताब को हुक्म दिया कि अपनी चिलचिलाती-धूप से उसे न काट और हवा को फ़रमान दिया कि उस पर से आहिस्ता से गुज़रे, बादल को हुक्म दिया कि उस पर मेंह ना बरसा और बिजली को तहदीद की कि उस को अपनी तेज़ी न दिखा। एक माद्दा भेड़ ने उसी वक़्त बच्चे दिए थे। मैंने उस को हुक्म दिया कि तू इस बच्चे को भी दूध पिला। चुनांचे उसने दूध पिलाया और उस की देख रेख भी की यहां तक कि वो जवान मोटा ताज़ा और बहादुर हो गया। इस के बावजूद ये कि ऐसी निगरानी और हिफ़ाज़त से मैंने उसकी परवरिश की और वो उस का शुक्र भी अदा करता था लेकिन आगे बढ़कर वही नमरूद निकला। और उसने मेरे ख़लील को आग में झोंका, अब वो काफ़िर हो कर लोगों को मेरी राह से फेरता है और ग़ुरूर और ख़ुदाई का दा’वा करता है ।
- पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 237)
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)
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