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एक यहूदी का अ’ली से मुकाबरा और उनका जवाब

रूमी

एक यहूदी का अ’ली से मुकाबरा और उनका जवाब

रूमी

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    रोचक तथ्य

    अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब

    एक दिन एक मुद्दई ने जो ख़ुदा की अ’ज़मत से आगाह ना था हज़रत-ए-मुर्तज़ा से कहा कि तुम महल के कोठे पर हो और ख़ुदा हिफ़ाज़त का ज़िम्मादार है इस से भी वाक़िफ़ हो। अ’ली ने फ़रमाया क्यों नहीं। वो हमारी हस्त-ओ-बूद का बचपन से जवानी तक हफ़ीज़-ओ-मुरब्बी रहा है।उसने कहा अगर ऐसा है तो अपने को कोठे से गिरा कर हिफ़ाज़त-ए-हक़ पर ए’तिमाद करो, ताकि मुझे तुम्हारे यक़ीन का इतमीनान हो और तुम्हारे ख़ुदा पर भी ए’तिक़ाद पैदा हो जाए।

    हज़रत-ए-अली ने -उस से कहा कि चल चुप रह कहीं तेरी जान इस जुर्अत का शिकार ना हो जाए ।भला बंदे की क्या मजाल कि अपनी बद-बख़ती से ख़ुदा की आज़माइश करे। अरे अहमक़ ये तो ख़ुदा ही का मन्सब है कि वो हर सांस पर अपने बंदों की आज़माइश करे ताकि हमारा हाल हम पर ज़ाहिर हो जाए कि हम अपने दिल की गहिराईयों में उस के अ’क़ीदे पर किस क़दर मज़बूत हैं। जिसने आसमान की छत खड़ी कर दी उस का इम्तिहान करना तू क्या जाने। तू पहले अपना इम्तिहान कर उस के बा’द दूसरे का याद रख जहाँ तेरे दिल में ख़ुदा के इम्तिहान की आरज़ू पैदा हुई कि तेरे दीन की मस्जिद झाड़ झनकार से भर गई।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 151)
    • प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)

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