एक अ’रब का अपने कुत्ते की जांकनी पर वावैला मचाना मगर खाने को एक निवाला भी ना देना- दफ़्तर-ए-पंजुम
रोचक तथ्य
अनुवादः मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब
एक कुत्ते की जान निकल रही थी और एक अ’रब पास बैठा रो रहा था। आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे और कहता जाता था कि अरे मुझ पर तो क़ियामत आ गई। हाय मैं क्या करूँ। अरे कौन सा जतन करूँ? अरे प्यारे कुत्ते तेरे बा’द क्यूँ-कर जियूँगा?एक फ़क़ीर उधर से गुज़रा। पूछा ये क्या वाक़िआ’ है तू किसलिए रो रहा है, उसने कहा कि मेरा एक कुत्ता बड़ा ही वफ़ादार था। देखो वो रास्ते में पड़ा दम तोड़ रहा है। दिन को शिकार कर के लाता और रात-भर निगहबानी करता था। कुत्ता क्या था वो तो शेर था। बड़ी रौशन आँखों वाला। चोरों को भगाने वाला और शिकार पकड़ने वाला तो ऐसा था कि शिकार के पीछे तीर की तरह जाता था। इस में बला की क़नाअ’त थी। बिलकुल बे-ग़रज़ था और दुश्मन को पास फटकने ना देता था और इस के बावजूद बहुत बा-वफ़ा नेक ख़सलत और मेहरबान था।
फ़क़ीर ने पूछा कि इस को क्या बीमारी है। क्या कोई ज़ख़्म हो गया है। अ’रब ने कहा कि भूक से मरा जाता है। फ़क़ीर ने कहा कि भाई इस मुसीबत और मरज़ुल-मौत पर सब्र करो। सब्र करने वालों को ख़ुदा अपने फ़ज़्ल-ओ-करम से ए’वज़ देता है। इस के बा’द पूछा कि सरदार आप की पीठ पर ये भरी हुई झोली काहे की है?। कहा कि कल के वास्ते कुछ रोटियाँ और खाई पकाई का सामान है। अपने हाथ पैर की क़ुव्वत क़ाएम रखने के लिए लिए जाता हूँ। फ़क़ीर ने कहा कि फिर तुम रोटी सालन कुत्ते को क्यों नहीं देते? अ’रब ने कहा इस दर्जा मोहब्बत-ओ-बख़्शिश मैं नहीं पालता। रोटियाँ तो बे पैसे हाथ नहीं आतीं अलबत्ता आँसू बेकार हैं सो उनको बहा देता हूँ। फ़क़ीर ने कहा अरे ख़ाक पड़े तेरे सर पर ओ हवा भरी वाई मश्क, तेरे नज़दीक रोटी का एक निवाला आँसू से बढ़कर है।आँसू तो वो ख़ून है जिसको ग़म ने पानी बना दिया। अरे बेहूदा तेरे नज़दीक ख़ून ख़ाक के बराबर भी नहीं रहा।
- पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 165)
- प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)
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