कहानी -1-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी
मैंने एक बादशाह के बारे में सुना है कि उसने एक क़ैदी को मृत्यु-दंड दे दिया। जब क़ैदी जीवन से निराश हो गया, तो वह क्रोध में आकर बादशाह को गालियाँ देने लगा। कहावत मशहूर है कि जो आदमी जान से हाथ धो लेता है, वह कुछ भी कहने सुनने में नहीं डरता। जब दुश्मन फंस जाता है और उसे बच निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझता, तो वह लड़ने के लिए तलवार उठा लेता है।
मनुष्य जब जीवन से निराश हो जाता है, तो वह निडर होकर बकने लगता है। बिल्ली जब कुत्ते के चंगुल में फंस जाती है, तो एकदम उसके ऊपर झपटती है।
बादशाह ने पूछा, यह क़ैदी क्या कह रहा है?
एक समझदार वज़ीर ने नम्रतापूर्वक उत्तर दिया, हुज़ूर, क़ैदी कह रहा है कि वे लोग कितने अच्छे होते हैं, जो क्रोध को पी जाते हैं और दूसरों को क्षमा कर देते हैं। बादशाह को क़ैदी पर दया आ गई। उसने उसे दंड देने का इरादा बदल दिया।
एक दूसरे वज़ीर ने, जो उस वज़ीर से जलता था, कहा, हुज़ूर! हम लोगों का फ़र्ज़ तो यह है कि आपको ठीक सलाह दें और सब बात को साफ़ साफ़ कह दें। इस क़ैदी ने हुज़ूर को गालियाँ दी हैं और जो नहीं कहना चाहिए था, कहा है, इसलिए इसे क्षमा नहीं किया जा सकता।
बादशाह को इस दूसरे वज़ीर की बात पसन्द नहीं आई। उसे क्रोध आ गया। उसने कहा, मुझे उसी वज़ीर की बात ठीक जची। उसका झूठ भी तेरे इस सब से अच्छा है, क्योंकि उसके दिल में भलाई करने का इरादा था।
'किसी आ’लिम ने ठीक ही कहा है कि दूसरों को आहत करने वाले सच से वह झूठ कहीं अच्छा है, जिससे किसी की जान बचती हो।'
बादशाह यदि अपने वज़ीर की सहायता से काम करे, तो वज़ीर को भी चाहिए कि वह जो सलाह दे, वह प्रजा के हित में हो।
फ़रीदूँ के महल की दीवार पर लिखा था—ऐ भाई! दुनिया ने कभी किसी का साथ नहीं दिया। तू दुनिया को बनाने वाले से दिल लगा और सन्तोष कर। दुनिया की हुकूमत पर भरोसा न कर। दुनिया ने तुझ जैसे बहुतों को पाला और मार डाला। जब जान-ए-पाक दुनिया से जाने का इरादा कर ले, तो जैसा ज़मीन पर मरना, वैसा तख़्त पर।
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