कहानी -13-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी
मैंने एक बादशाह के बारे में सुना है कि वह एक रात भोग-विलास में डूबा हुआ कह रहा था, 'मेरे लिए संसार में इससे बड़ा सौभाग्य और क्या होगा? न मुझे किसी की अच्छाई-बुराई से मतलब है और न कोई चिन्ता है।'
उसी समय जाड़े में ठिठुरते हुए एक नंगे फ़क़ीर ने कहा, ऐ बादशाह! माना कि तेरे जैसा नसीब किसी का नहीं और तुझे अपना भी कोई ग़म नहीं है, लेकिन क्या तुझे हमारा भी कोई ग़म नहीं है?
बादशाह प्रभावित हुआ। उसने एक हज़ार अशर्फ़ियों की थैली खिड़की से बाहर निकालते हुए कहा, ऐ फ़क़ीर! अपना दामन फैला!
फ़क़ीर बोला, 'बदन पर कपड़ा ही नहीं है, दामन कहाँ से लाऊँ?'
बादशाह को उसकी दीन दशा पर और भी अधिक दया आई। उसने उन अशर्फ़ियों के साथ उसके लिए कुछ कपड़े भी भिजवा दिए।
फ़क़ीर ने थोड़े ही समय में वह सारा धन ख़र्च कर डाला और फिर पहले जैसी दीन-हीन अवस्था में उसी जगह आकर बैठ गया।
आज़ाद लोगों के हाथ में धन उसी प्रकार नहीं ठहरता, जैसे प्रेमी के हृदय में धैर्य या छलनी में पानी।'
लोगों ने बादशाह से फ़क़ीर का हाल कह सुनाया। बादशाह उस समय आमोद-प्रमोद में व्यस्त था। उसे क्रोध आ गया और उसने मुँह फेर लिया। बुद्धिमान लोगों ने ठीक ही कहा है, 'बादशाह से उचित समय देखकर बात करनी चाहिए और साथ ही उनके क्रोध से बचना चाहिए।'
'बादशाह का इन'आम-ओ-इकराम उस आदमी पर हराम हो जाता है, जो फ़ुर्सत और मौक़े’ का ख़याल नहीं रखता।'
'जब तक तू बात करने का सही मौक़ा' न देख ले तब तक बे-कार बात करके अपनी क़द्र मत घटा।'
बादशाह ने आदेश दिया, जिसने तमाम दौलत इतनी जल्दी उड़ा दी, उस बे-शर्म फ़ुज़ूल ख़र्च को यहाँ से निकाल दो। शाही ख़ज़ाना ग़रीबों को रोटी देने के लिए है, इस जैसे शैतान के भाइयों के लिए नहीं, जो उसे तुरंत लुटा दें।
'वह मूर्ख जो दिन में कपूर के चराग़ जलाता है, ऐसा दिन जल्द ही देखेगा, जब रात के अंधेरे में उसके चराग़ में तेल भी न होगा।'
उस बादशाह के एक वज़ीर ने सलाह दी, हुज़ूर! इन फ़क़ीरों के लिए वज़ीफ़ा बाँध दीजिए जिससे ये लोग फ़ुज़ूल ख़र्ची न कर सकें। आपने इस फ़क़ीर को निकाल देने का जो आदेश दिया है, वह उचित नहीं है। यह आप जैसे ऊँचे दर्जे वालों की शान के ख़िलाफ़ है कि पहले किसी पर कृपा करें और बा’द में उसे निराश करके उसका दिल तोड़ दें।
'लालची के लिए अपना दरवाज़ा कभी नहीं खोलना चाहिए, लेकिन खुल ही जाए, तो उसे सख़्ती से बन्द भी नहीं करना चाहिए।'
हिजाज़ के प्यासे खारे पानी के किनारे एकत्र हो, ऐसा किसी ने न देखा होगा। जहाँ मीठे पानी का चश्मा हो, वहाँ आदमी, पक्षी और चीटियों का जमघट होता है।
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