कहानी-14- फ़क़ीरी गुलिस्तान-ए-सा’दी
एक फ़क़ीर को ज़रूरत पड़ी तो उसने अपने एक दोस्त की कमली चुरा ली और उसे बेचकर पैसा ख़र्च कर डाला। क़ाज़ी का हुक्म हुआ कि उसका हाथ काट डाला जाए।
कमली के मालिक ने कहा, इसे सज़ा मत दीजिए। मैंने वह कमली इसे बख़्श दी।
क़ाज़ी बोला, तेरी सिफ़ारिश के बावजूद मैं शरह के ख़िलाफ़ चोर को कैसे छोड़ सकता हूँ?
उसने कहा, आपने जो कहा वह तो ठीक है लेकिन वक़्फ़ के माल से चोरी करना ऐसा जुर्म नहीं है कि उसके लिए हाथ काटने की सज़ा दी जाए। फ़क़ीर किसी चीज़ का मालिक नहीं होता। फ़क़ीर के पास जो कुछ भी है वह ज़रूरत-मन्दों के लिए है।
क़ाज़ी ने यह सुनकर उस फ़क़ीर को छोड़ तो दिया किन्तु उसकी बड़ी निन्दा की। उसने कहा, सारी दुनिया को यह बात बुरी लगी होगी कि तूने चोरी भी की तो अपने ही दोस्त के घर में।
फ़क़ीर ने उत्तर दिया, क्या आपने नहीं सुना कि लोगों ने कहा है, दोस्तों के घर चाहे झाड़ू फेर दे लेकिन दुश्मनों का दरवाज़ा मत खटखटा। जब तू मुसीबत में फंसा हो तो लाचार मत बैठ। दोस्तों की पोस्तीन और दुश्मनों को खाल उतार ले।
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