कहानी -16-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी
मेरा एक दोस्त मुझसे शिकायत करने लगा कि, ज़माना बड़ा ख़राब है। मेरी आमदनी थोड़ी है और बाल-बच्चे ज़ियादा। कहाँ तक सहा जाए? भूखों मरा नहीं जाता। कई बार मन में आता है कि परदेस चला जाऊँ। सुख-दुख में जैसे भी हो वहाँ गुज़र कर लूँ। किसी को मेरे अच्छे या बुरे हाल का पता भी नहीं चलेगा।
न जाने कितने लोग भूखे सो जाते हैं और किसी को ख़बर भी नहीं होती। न जाने कितने मृत्यु-शय्या पर पड़े होते हैं और कोई उन्हें रोने वाला भी नहीं होता।
परन्तु मुझे भय है कि पीठ पीछे मेरे शत्रु ख़ुश हो-होकर मेरी हंसी उड़ाएँगे,मुझे ता'ने देंगे और कहेंगे कि, 'वह आदमी कितना बे-मुरव्वत है! ख़ुद तो चला गया और बेचारे बाल-बच्चों को यहाँ मुसीबत उठाने के लिए छोड़ गया।'
उस बेशर्म को देखो ! वह कभी ख़ुश-हाल न होगा, जो अपने ख़ुद के आराम के लिए बीवी-बच्चों को मुसीबत में छोड़ गया।
आपको मा’लूम है कि मुझे थोड़ा-बहुत हिसाब-किताब का काम आता है। यदि आपकी सहायता से मुझे कोई काम मिल जाए जिससे मेरी गुज़र होती रहे तो मैं आजीवन आपका आभारी रहूँगा।
मैंने कहा, 'मेरे भाई, बादशाह की नौकरी में दो बातें हैं- रोटी की उम्मीद और जान का ख़तरा, अ’क़्लमन्दों की राय है कि रोटी की उम्मीद में जान का ख़तरा नहीं मोल लेना चाहिए।
'फ़क़ीर के घर आकर कोई यह तक़ाज़ा नहीं करता कि ज़मीन या बाग़ का कर दे। या तो रंज और परेशानी को सह लें, या फिर अपना कलेजा चील और कव्वों को खिलाने के लिए तैयार रख।'
उसने कहा, “जनाब ने जो कुछ कहा वह मेरी समझ में नहीं आया,न उससे मेरी परेशानी का कोई हल निकला।बादशाह की नौकरी से वही डरता है, जो बे-ईमान होता है। जो कायर है उसी का हाथ काँपता है।
'सच्चाई ख़ुदा को ख़ुश रखने का ज़रिया’ है। मैंने कभी किसी सच्चे आदमी को भटकते नहीं देखा।'
'अ’क़्लमन्दों का कहना है कि चार तरह के इन्सानों की चार तरह के इन्सानों से दुश्मनी होती है—डाकू की बादशाह से,चोर की चौकीदार से, दुराचारी की चुग़ल-ख़ोर से और वैश्या की कोतवाल से।'
जिसका हिसाब साफ़ है,उसे हिसाब की जांच का क्या डर?'
यदि तू चाहता है कि नुक्ता-चीनी करने वालों को कोई ऐ’ब निकालने का मौक़ा’ न मिले, तो तू अपने काम को बे-कार मत फैला।'
'ऐ भाई ! तू पाक रह और किसी से न डर, क्योंकि गन्दे कपड़े को ही धोबी पत्थर पर पीटते हैं।'
मैंने फिर उससे कहा, तुझे उन लोमड़ी की कहानी से शिक्षा लेनी चाहिए जिन लोगों ने भागते हुए और गिरते-पड़ते देखकर पूछा, 'क्या मुसीबत है जो तू इतनी डरी हुई है?
उसने जवाब दिया, 'मैंने सुना है कि शेरों को पकड़ा जा रहा है और उनसे कुछ बेगार ली जाएगी।
उन्होंने फिर पूछा,रे मूर्ख! शेर पकड़े जा रहे हैं तो तुझे क्या?'
वह बोली, 'चुप रहिए! यदि किसी दुश्मन ने मुझे भी शेर का बच्चा बता दिया और पकड़ने वालों ने मुझे भी पकड़ लिया, तो मुझे कौन छुड़ाएगा? मेरे साथ किसकी हम-दर्दी है जो मेरे मामले में छान-बीन करेगा और जब तक कोई मेरी मदद को आएगा लोग मझे मार भी डालेंगे।
कहावत मशहूर है,'जब तक इ’राक़ से तिर्याक़ आएगा सांप का काटा मर भी जाएगा।'
'बेशक तुझमें होशियारी, दूर-अन्देशी, सच्चाई और ईमानदारी जैसे सब गुण हैं, लेकिन जलने वाले दुश्मन तो इस ताक में रहते हैं कि कब मौक़ा’ मिले और कब तुझे गिराए। यदि ऐसे लोगों ने बादशाह से तेरी चुग़ली खानी शुरू’ कर दी और तुझे उसने किसी मुआ’मले में तलब कर लिया तो वहाँ कोई भी तेरा सहायता नहीं करेगा। अत: मेरी समझ में तो यही आता है कि तू सब से आधी रोटी खा ले और बादशाह की नौकरी और मर्तबा पाने का इरादा छोड़ दे।
नदी में ग़ोता-ख़ोरी से फ़ायदे तो बहुत-से हो सकते है, लेकिन तू जान की हिफ़ाज़त चाहता है, तो किनारे पर ही रह।'
मेरे दोस्त को मेरी बातें अच्छी न लगी। उसने क्रोध में आकर मुँह फेर लिया और मुझे बुरा-भला भी कहा और बोला, 'दोस्त वही है, जो क़ैद-ख़ाने में भी दोस्त की मदद करे। दस्तरख़्वान पर तो दुश्मन भी दोस्त मा’लूम होते हैं।'
'तु उसको अपना दोस्त मत समझ, जो ख़ुश-हाली में तेरी दोस्ती का दम भरता है। मैं तो उसी को सच्चा दोस्त मानता हूँ, जो लाचारी और परेशानी में दोस्त का साथ दे।'
जब मैंने देखा कि मेरी नसीहत उसे बुरी लग रही है और वह मुझे स्वार्थी समझ रहा है तो मैं अपनी जान-पहचान के एक हाकिम के पास गया और अपने दोस्त की सब कहानी कह सुनाई। मेरी सिफ़ारिश पर उसने उसे एक छोटी-सी नौकरी दी। थोड़े ही दिनों बा’द उसकी सच्चाई और ईमानदारी से प्रसन्न होकर उसने उसकी और तरक़्क़ी कर दी। धीरे-धीरे वह ऊँचे-से-ऊँचे पद पर पहुँच गया और बादशाह के विश्वास-पात्रों और नज़दीक बैठने वालों में शामिल हो गया। उसकी ख़ुश-हाली पर मुझे भी बड़ी ख़ुशी हुई और मैंने उससे कहा, 'आदमी को निराश नहीं होना चाहिए न दिल ही तोड़ना चाहिए, क्योंकि आब-ए-हयात अंधेरे में ही है।'
'मुसीबत के मारे इन्सान को रोना-चिल्लाना नहीं चाहिए, क्योंकि हर जगह ख़ुदा की मेहरबानियाँ छिपी रहती हैं।'
'समय के फेर से मुँह मत बिगाड़, न मायूस होकर बैठ। सब्र कड़वा ज़रूर होता है। लेकिन उसका फल मीठा होता है।'
इस घटना के बा’द मैं कुछ दोस्तों के साथ मक्का शरीफ़ की ज़ियारत के लिए चला गया। जब मैं लौटकर आया तो मेरा स्वागत करने सबसे पहले वही मेरा दोस्त आया। वह बहुत दुखी और परेशान मा’लूम होता था। उसकी फ़क़ीरों जैसी हालत हो गई थी। मैंने पूछा, कहो भाई, क्या हाल चाल है
वह बोला, जो आप कह रहे थे वही हुआ। कुछ लोगों को मेरी उन्नति देखकर जलन हुई और उन्होंने मुझ पर सरकारी पैसा हड़प कर जाने का आरोप लगाया। बादशाह सलामत ने सच्चाई जानने की कोई कोशिश नहीं की। उधर मेरे पुराने साथी और जिन्हें मैं पक्का दोस्त मानता था, वे सब चुप रहे। किसी ने मेरे पक्ष में कुछ नहीं कहा।”
क्या तूने यह नहीं देखा है कि जब भाग्य किसी का साथ देता है, तो लोग भी उसकी प्रशंसा करते हैं और सीने पर हाथ बाँधकर उसकी आज्ञा का पालन करने को तैयार खड़े रहते हैं। परन्तु जैसे ही उसका पतन हो जाता है, तो दुनिया उसके सिर को पाँव से ठुकराती है।
ख़ुलासा यह है कि मुझे तरह-तरह की सज़ाएँ दी गईं और जेल-ख़ाने में डाल दिया गया। तब से मैं वहीं पड़ा हुआ था। इसी हफ़्ते जब हाजी लोगों के सकुशल लौटने की ख़बर बादशाह को मिली तो उसने इस ख़ुशी में क़ैदियों को छोड़ देने का हुक्म दे दिया। मैं भी भारी बेड़ियों से मुक्त कर दिया गया और मेरी जायदाद मुझे लौटा दी गई है।
मैंने उससे कहा, उस वक़्त तूने मेरी नसीहत नहीं मानी। मैंने तुझे चेतावनी दी थी कि बादशाह की नौकरी समुद्र में व्यापारी बेड़े को चलाने जैसी है। उसमें ख़तरा भी है और फ़ायदा भी। हो सकता है कि तू मालामाल हो जाए या फिर भंवर में फंस कर जान से हाथ धो बैठे।
अगर तेरे कानों में दूसरों की नसीहत घर नहीं करती तो फिर अपने पैरों में बेड़ी देखने को तैयार रह।
यदि तुझमें इतनी शक्ति नहीं है कि बिच्छू के डंक को दुबारा बर्दाश्त करे, तो उसके सूराख़ में उंगली मत डाल।।
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