कहानी -2-परवरिश- गुलिस्तान-ए-सा’दी
एक अ’क़्लमन्द अपने बेटो को नसीहत दे रहा था, ऐ बाप के प्यारो! हुनर सीखो। इसलिए कि हुकूमत और दुनिया की दौलत पर कोई भरोसा नहीं किया जा सकता। सोने और चाँदी में ख़तरा है। या तो उसे चोर ले जाएगा या लोग उसे खा जाएँगे। हुनर कभी न सूखने बाला सोता है और हमेशा रहन वाली दौलत। अगर हुनरमन्द का पैसा चला जाए तो कोई फ़िक्र की बात नहीं, क्योंकि हुनर ख़ुद दौलत है। हुनरमन्द जहाँ भी जाएगा उसकी इ’ज़्ज़त होगी और लोग उसे ऊँची जगह पर बैठाएँगे। बे-हुनर हमेशा रोटी-रोटी को मोहताज रहेगा और मुसीबतें उठाएगा।
ऊँचे पद पर रह चुकने के बा’द किसी की चाकरी करनी पड़े तो बहुत तकलीफ़ होती है। दूसरों का हुक्म बर्दाश्त नहीं होता। जो आदमी नाज़ों में पला हो वह दूसरों का ज़ुल्म कैसे बर्दाश्त करेगा?
मुल्क-ए-शाम में एक बार गड़बड़ मची और हर शख़्स अपनी हिफ़ाज़त के लिए निकल-निकलकर भागने लगा।
देहातियों के अ’क़्लमन्द लड़के तो बादशाह के दरबार में वज़ीर बनकर पहुँच गए और वज़ीरों के बे-वक़ूफ़ लड़के भीख माँगने के लिए देहातों में पहुँचे।
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