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कहानी -20-परवरिश- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

कहानी -20-परवरिश- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

MORE BYसादी शीराज़ी

    मैंने एक आदमी को देखा जो सूरत तो फ़क़ीरों की-सी बनाए हुए था लेकि फ़क़ीरों जैसे गुण उसमें नहीं थे। महफ़िल में बैठा हुआ वह दूसरों की बुराइयाँ कर रहा था और उसने शिकायतों का पूरा दफ़्तर खोल रखा था, धनवान लोगों की वह ख़ास तौर पर बुराई कर रहा था।

    वह कह रहा था, फ़क़ीर की ताक़त का बाज़ू बंधा हुआ है तो अमीरों की हिम्मत की टाँग टूटी हुई है।

    'जो दानी हैं उनके पास पैसा नहीं है और जो पैसे वाले हैं उनमे रहम नहीं है।'

    मैं बुज़ुर्गों की ने’मतों का पला हुआ हूँ, इसलिए मुझे उसकी बातें ना-गवार लगीं। मैंने कहा, दोस्त धनवान ही ग़रीबों की आमदनी है। वही कोने में बैठे रहने वाले फ़क़ीरों की पूँजी हैं। ज़ियारत करने वालों का मक़्सद भी वे ही पूरा करवाते हैं। वे मुसाफ़िरों को पनाह देते हैं और दूसरों के लिए भारी ज़िम्मेदारियाँ ले लेते हैं। खाने में तब तक हाथ नहीं डालते जब तक अपने घर वालों और दूसरे लोगों को खिला नहीं देते। उन्हीं की मेहरबानी से बहुत-सी बेवाओं, बूढों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों को रोटी मिलती है।

    'वक़्फ़ करना, मन्नत पूरी करना, मेहमानों को खिलाना, ज़कात देना, फ़ितरा अदा करना, ग़ुलाम आज़ाद करना, खाना-ए-का’बा को कुर्बानी भेजना, ये सब काम धनवान ही कर सकते हैं और करते है।'

    अ’रब वाला कहता है, मैं अल्लाह से दुआ’ माँगता हूँ कि वह मुझे औधा कर देने वाली ग़रीबी से बचाए और ऐसे आदमी के पड़ोस से बचाए जो मुझसे मुहब्बत नहीं करता।

    हदीस में भी आया है कि, 'ग़रीबी दोनों दुनियाओं में मुंह की कालिख बनती है।'

    वह फ़क़ीर मुझसे बोला, तूने वह तो सुन लिया जो अ’रब ने कहा। क्या तूने यह नहीं सुना कि रसूलुल्लाह ने फ़रमाया है कि, मैं फ़क़ीरी पर फ़ख़्र करता हूँ?'

    मैंने कहा, चुप रह! रसूलुल्लाह का इशारा उन फ़क़ीरों की तरफ़ है जो ख़ुदा की मर्ज़ी में ही राज़ी रहते हैं और जो ख़ुदा की भेजी हई हर चीज़ को ख़ुशी से क़ुबूल करते हैं, कि वे लोग जो गुदड़ी पहन लेते हैं और ख़ैरात में मिले टुकड़े बेचते फिरते हैं।

    'ऐ ऊँची आवाज़ वाले ढोल! चलते वक़्त तेरे पास खाना नहीं होगा तो तू क्या करेगा?

    'अगर तू हिम्मत वाला मर्द है तो लालच मत कर और दुनिया से मुंह फेर ले। फ़ुज़ूल में हज़ार दानों वाली तस्बीह को अपने हाथ पर मत लपेट।'

    मैं कहता गया, ग़रीब आदमी गुनाह जल्द करने लगता है क्योंकि जो नंगा है वह पैसों के बिना कपड़े कहाँ से पहनेगा? इसीलिए हम जैसे लोग पैसे वालों के दर्जे तक नहीं पहुँच सकते है। ऊपर के हाथ का नीचे के हाथ से क्या मुक़ाबला?

    क़ुरआन शरीफ में अल्लाह तआ’ला ने जन्नत के लोगों के बारे में यह कहा है कि ये वे लोग हैं जिनकी रोज़ी मुक़र्रर है।'

    'प्यासों को सपने में तमाम दुनिया पानी का चश्मा नज़र आती है।'

    जब मैंने यह बात कही तो फ़क़ीर ग़ुस्से से उबल पड़ा। वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाकर कहने लगा, तूने धनवानों की ता’रीफ़ों के पुल बाँध दिए और इतनी बे-तुकी बातें कहीं जिनका कोई हिसाब नहीं। तेरी बातों से लोग मालदारों को तिर्याक़ समझेंगे या रिज़्क़ की कोठरी की चाबी। यही थोड़े से लोग हैं जो घमंड़ में चूर रहते हैं, अपनी ता'रीफ़ करवाना चाहते हैं, ग़रीबों से नफ़रत करते हैं, धन-दौलत बटोरने में हमेशा लगे रहते हैं और अपने मर्तबे के चक्कर में झगड़े-फ़सादों में फंसे रहते हैं। ये लोग बिना सिफ़ारिश किसी से मिलना और बात करना भी पसन्द नहीं करते, किसी की तरफ़ देखते हैं तो नाक सिकोड़कर, आ’लिमों को फ़क़ीरों में शुमार करते हैं और फ़क़ीरों को नंगा होने का ता’ना देते है।

    इन सब बुराइयों का कारण उनके पास माल-दौलत का होना है। उन्हें तो अपने ऊँचे मर्तबे का घमंड रहता है। सबसे ऊपर चढ़कर बैठते हैं। उनके दिमाग़ में यह नहीं आता कि किसी की तरफ़ सिर उठाकर देखें। उन्हें अ’क़्लमन्दों की यह बात नहीं मा’लूम कि—

    जो ख़ुदा की इ’बादत में और लोगों से कम है और धन-दौलत में बढा हुआ है, देखने में तो मालदार है, लेकिन अ’मल में फ़क़ीर है।

    मैंने उस फ़क़ीर से फिर कहा, तू मालदारी की बुराई कर। वे लोग दूसरों पर करम करते हैं।

    उसने कहा, तू ग़लत कहता है। ये तो पैसों के ग़ुलाम होते है। उनमें किसी को कोई फ़ाइदा नहीं। उन्हें तो आज़र के महीने का बादल रहना चाहिए जो कभी बरसता ही नहीं या उन्हें ऐसा सूरज कहना चाहिए जो किसी को रौशनी नहीं देता। ख़ुदा की राह में वे एक क़दम भी नहीं चलते और बिना एहसान जताए किसी को एक दिरम भी नहीं देते। मुसीबतें झेलकर दौलत इकट्ठी करते हैं, कंजूसी से उसकी हिफ़ाज़त करते हैं और मरते वक़्त उसे हसरत के साथ छोड़ जाते हैं। बुज़ुर्गों ने ठीक ही कहा है कि 'कंजूस की चाँदी ज़मीन में उस वक़्त निकलती है जब वह ख़ुद ज़मीन के नीचे चला जाता है।

    मैंने उसे जवाब दिया, तू लालची फ़क़ीर होने के कारण धनवानों से जलता है। इसी कारण उन्हें कंजूस बताता है। जिस फ़क़ीर में लालच नहीं होता उसे तो दानी और कंजूस एक-से दिखाई देते हैं।

    वह बोला, मैंने तो देखा है कि ये मालदार लोग अपने दरवाजों पर मुलाज़िम रखते हैं जो बड़े सख़्त और बे-रहम होते हैं। ये आसानी से किसी को अन्दर नहीं जाने देते। सीधे-सादे और भले लोगों को ये बहुत तंग करते हैं और कह देते हैं कि, 'अन्दर कोई नहीं है। अस्ल में वे ठीक ही कहते हैं।

    जिस धनवान में अ’क़्ल है, हिम्मत, अच्छी राय, कोई तदबीर, उसके बारे में ड्योढीबान ठीक ही कहता है कि वह है ही नहीं। उसका दुनिया में होना होना बराबर है।'

    मैंने कहा, इसकी वजह यह है कि वे लोग माँगने वालों से तंग जाते हैं। यह ठीक भी है। लालची फ़क़ीरों की अ’र्ज़ियाँ कहाँ तक पढे! सबको ख़ुश रखना मुम्किन भी नहीं।

    'यदि रेगिस्तान की रेत के सब ज़र्रे मोती बन जाएँ, तो शायद लालची फ़क़ीरों को एक वक़्त का खाना मिल सके। दुनिया की ने’मतों से फ़क़ीरों का पेट नहीं भरता, जैसे ओस के गिरने से कुआँ नहीं भरता।'

    'जहाँ कहीं तू किसी को मुसीबत में फंसा हुआ देखेगा तो उसका कारण यह पाएगा कि उसने लालच में आकर कोई ख़तरनाक काम ज़रूर किया होगा। उसे आख़िरत की सज़ा का कोई डर रहा होगा और उसने हलाल और हराम में कोई तमीज़ की होगी।'

    'अगर कुत्ते के सिर पर कोई पत्थर भी मारता है तो वह समझता है कि हड्डी गई और ख़ुशी से उछल पड़ता है। अगर दो आदमी कंधे पर लाश ले जा रहे हों,तो भिखमंगा यह समझता है कि दस्तरख़्वान बिछा हुआ रहा है।'

    'मैंने जो कुछ कहा है उसका कोई सुबूत या उसके लिए कोई दलील नहीं दी। फिर भी मैं तुझी से पूछता हूँ कि अगर तूने कभी किसी को मुश्कें बंधी हुई देखी हो तो यह ज़रूर पता चला होगा कि उसने ग़रीबी से तंग आकर किसी को धोखा दिया था। अगर तूने किसी को क़ैद में पड़ा हुआ देखा होगा या किसी की बे-इ’ज़्ज़ती होते हुए देखी होगी या किसी का हाथ कलाई पर से कटा हुआ देखा होगा तो इन सबकी एक ही वजह पाई होगी कि इन लोगों ने अपनी ग़रीबी से तंग आकर कोई कोई गुनाह किया था। बड़े से बड़े पाक-बाज़ों को भी मजबूर होकर सेंध लगानी पड़ती है और सज़ा के तौर पर उनके पैरों में बेड़ियाँ डाल दी जाती हैं।

    'जब इन्सान भूखा होता है तो उनमें परहेज़गारी की ताक़त नहीं रहती। ग़रीबी परहेज़गारी के हाथ से बागड़ोर खींच लेती है।'

    तूने यह कहा कि अमीर लोग फ़क़ीरों पर अपने दरवाज़े बन्द कर लेते हैं। वे ठीक ही करते हैं। हातिम ताई बड़ा दानी कहलाता है। उसका राज़ यह है कि वह जंगल में रहता था। जंगल में बहुत-से माँगने वाले नहीं पहुँच पाते। अगर वह शहर में रहता तो वह भी माँगने वालों की भीड़ से तंग जाता। हो सकता है कि भिखमंगे उसके कपड़े तक फाड़ डालते।

    वह बोला, मैं कभी मालदारों पर तरस नहीं खा सकता।

    मैंने कहा, तू उनकी दौलत से जलता क्यों है?

    इस तरह हम दोनों में बहस चल रही थी। जो दलील वह देता उसे मैं काट देता। धीरे-धीरे उसकी हिम्मत की थैली की सब नक़दी ख़त्म हो गई और उसकी दलीलों के तरकश के सब तीर खाली हो गए।

    'ख़बरदार! कहीं बक्की आदमी की बकवास के रो'ब में आकर अपने हथियार मत डाल देना। उसकी लम्बी-चौड़ी बातों को माँगे हुए हथियार समझो जो ज़ियादा देर तक काम नहीं आते।

    'अस्ल चीज़ इ’ल्म है। इसलिए तू दीन को जानने और ख़ुदा को पहचानने की कोशिश कर। तुक-बन्दी करने वाला शाइ’र बे-कार आदमी है। वह उस सिपाही की तरह है, जो क़िले’ के दरवाज़े पर हथियार रखे हए बैठा है, जब कि उस क़िले’ के अन्दर कुछ भी नहीं है।'

    अन्त में जब उसके पास कोई भी दलील बची और मैंने उसे निरुत्तर कर दिया तो वह लड़ने को तैयार हो गया और गालियाँ बकने लगा।

    ख़ुलासा यह कि हमारा झगड़ा क़ाज़ी के सामने पहुँचा। हम दोनों इस बात पर राज़ी हो गए कि क़ाज़ी साहब जो फ़ैसला देंगे वही ठीक होगा। हम इन्तिज़ार करने लगे कि देखें कि मुसलमानों का हाकिम कोई अनोखी दलील निकालकर अमीरों और ग़रीबों में क्या फ़र्क़ बताता है?

    हमारी बातें सुनकर क़ाज़ी सोच में पड़ गया। थोड़ी देर बा’द उसने सिर उठाया और मुझसे कहा, 'ऐ मालदारों की ता’रीफ़ करने वाले! तूने ग़रीबों पर उनके ज़ुल्म को जाइज़ समझा। जान ले कि जहाँ फूल है वहाँ काँटे भी हैं। शराब के मज़े के बाद जिस्म टूटने की तकलीफ़ भी होती है। ख़ज़ाने के साथ साँप भी देखा गया है। दुनिया के मज़ों के साथ मौत का डर भी लगा रहता है।

    दोस्त को चाहने वाला दुश्मन का ज़ुल्म सहेगा तो क्या करेगा? ख़ज़ाना और साँप, फूल और कांटे, रंज और ख़ुशी मिले हए चलते हैं।

    तू बाग़ को नहीं देखता, जहाँ बेद मुश्क जैसी ख़ुश्बूदार लकड़ी भी है और झंखाड़ भी हैं। इसी तरह मालदारों में भी ख़ुदा का शुक्र अदा करने वाले ख़ुदा-परस्त भी हैं और ख़ुदा को भूल जानेवाले घमंडी नाशुक्रे भी हैं। वैसे ही फ़क़ीरों में सब्र करने वाले भी है और कमीने भी।

    अगर ओलों का हर क़तरा मोती बन जाता तो सारा बाज़ार कोड़ियों की तरह मोतियों से भर जाता।'

    'अल्लाह तआ’ला के प्यारे वे मालदार हैं जिनमें फ़क़ीरों की-सी अच्छी आ’दतें हैं और उसे वे फ़क़ीर प्यारे हैं, जिनमें मालदारों की-सी हिम्मत है। मालदारों में बड़ा वह है जो फ़क़ीर का ग़म खाए और फ़क़ीर वह ऊँचा है जो मालदारों की परवाह करे।

    फिर क़ाज़ी ने अपने ग़ुस्से का रुख़ मेरी तरफ़ से हटाकर उस फ़क़ीर की तरफ़ कर दिया और उससे बोला, मालदारों की बुराई करने वाले! तू कहता है कि मालदार बुरे और ना-जाइज़ कामों में लगे रहते हैं। हाँ, हो सकता है। कुछ मालदार ऐसे ज़रूर हैं जो ख़ुद खाते हैं और किसी को खाने देते हैं। उन्हें इससे कोई मतलब नहीं कि बारिश नहीं हुई है या सैलाब ने दुनिया को तबाह कर दिया है। उन्हें तो अपने पैसे का ग़ुरूर है और वे इसी से मस्त हैं। वे दुखी लोगों का हाल पूछते हैं और ख़ुदा से डरते हैं।

    बे-शक, कुछ मालदार ऐसे ही हैं! लेकिन कुछ ऐसे भी है जो ने’मतों का दस्तरख़्वान दूसरों के लिए फैलाए बैठे हैं और करम का हाथ खोले हुए हैं। ऐसे लोग लोक और परलोक दोनों के मालिक हैं।

    ऐसे नेक लोग उस बादशाह के दरबार में ही मिल सकते हैं जो इंसाफ़ पसन्द है और जिसको ख़ुदा की मदद हासिल है, जो कामयाब है, जो लोगों के दिलों पर हुकूमत करता है, जो इस्लामी मुल्कों की हिफ़ाज़त करता है। हज़रत सुलैमान का वारिस है, दीन और दुनिया दोनों में सफल है, या’नी जो हमारा बादशाह है, जिसका नाम अताबक-अबू-बक्र-बिन-सा’द ज़ंगी है। ख़ुदा उसकी सन्तान बनाए रखे और उसके झंडों को बुलंद रखे।जब क़ाज़ी ने बात यहाँ तक पहुँचा दी तो उसने मान लिया और जो कड़वाहट पैदा हो गई ख़त्म हो गई क़ाज़ी ने शेर पढ़कर बात ख़त्म की--

    'ऐ फ़क़ीर! तू ज़माने की गर्दिश की शिकायत कर। अगर तू इसी हालत में मर गया तो बड़ा बद-नसीब समझा जाएगा।'

    'और मालदार! जब मेरे दिल की मुरादें पूरी हो चुकी हैं और तेरे हाथ में धन है तो ख़ुद भी खा और दूसरों को भी दे, ताकि तुमको लोक और परलोक दोनों का सुख मिले।'

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