कहानी -23-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी
अ’मरलैस का एक ग़ुलाम भाग गया। कुछ लोग उसके पीछे लगा दिए गये और वे उसे पकड़ कर ले आए। वज़ीर पहले से ही इस ग़ुलाम से चिढ़ता था। उसने बादशाह को उसे मरवा डालने की राय दी जिससे दूसरे ग़ुलाम कभी भागने का साहस न करें।
ग़ुलाम ने जब यह सुना तो बादशाह के सामने अदब से अपना सिर ज़मीन पर रखकर बोला, तू जो चाहे मेरे साथ कर, मैं तो ग़ुलाम हूँ। तरे हुक्म के आगे कर ही क्या सकता है? लेकिन इतना ज़रूर कहना है कि मैं तेरे टुकड़ों पर पला हूँ इसलिए नहीं चाहूँगा कि बिना उचित कारण के मेरा ख़ून बहाया जाए और उसका इल्ज़ाम क़ियामत के रोज़ तेरे ऊपर लगे। इसलिए पहले मुझे वज़ीर को मार डालने की इजाज़त दें और फिर उस जुर्म पर मुझे मौत की सज़ा दे डालें ताकि तेरे हाथ से इन्साफ़ हो।
बादशाह हँस पड़ा और वज़ीर से बोला, कहिए, अब आपकी क्या राय है?
वज़ीर ने जवाब दिया, ऐ दुनिया के मालिक! अब मेरी राय यह है कि आप ख़ुदा के वास्ते और अपने वालिद की क़ब्र के सदक़े में इस ना-लायक़ को आज़ाद ही कर दीजिए। ऐसा न हो कि यह मुझे किसी और मुसीबत में फंसा दे। मैंने ग़लती की जो अ’क़्लमन्दों की बात पर यक़ीन नहीं किया। उन्होंने कहा है:
'जब ढेले फेंकने वाले से तू लड़ाई मोल लेगा तो बे-वक़ूफ़ी से अपना ही सिर फुड़वाएगा।
'यदि तू किसी दुश्मन पर तीर चलाता है तो यह समझ ले कि तू भी उसके तीर का निशाना बनेगा।
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