कहानी-23- फ़क़ीरी गुलिस्तान-ए-सा’दी
एक पापी पर अल्लाह की ऐसी कृपा हुई कि उसे मा’रिफ़त हासिल हो गई और वह पहुँचे हुए फ़क़ीरों में रहने लगा! फ़क़ीरों की संगति से उसकी बुरी आ’दतें अच्छाइयों में बदल गईं। उसने काम-वासना पर भी क़ाबू पा लिया।
उसके दुश्मन उसे ता’ना दिया करते थे। ये कहते कि उसकी हालत अब भी ज्यों की त्यों है। उसकी परहेज़गारी दिखावटी है। उस पर भरोसा नहीं किया जा सकता।
'अगर कोई गुनाहगार गुनाहों से तौबा कर ले, तो मुम्किन है कि ख़ुदा उसे मु’आफ़ कर दे, लेकिन यह मुम्किन नहीं है कि वह दुश्मनों की ता'ना-बाज़ी से बच जाए।'
जब वह फ़क़ीर लोगों के ता'ने सुनते-सुनते परेशान हो गया तो अपने पीर के पास पहुँचा और उनसे अपना दुख कहा।
उन्होंने कहा, तू ख़ुदा की इस ने'मत का शुक्रिया कैसे अदा कर सकता है कि लोग तुझे जैसा समझते हैं उससे तू कहीं अच्छा है? तू यह शिकायत कब तक करता रहेगा कि तेरा बुरा चाहने वाले और तुझसे जलने वाले तेरी निन्दा करते रहते हैं? लोग तुझे अच्छा कहें और तू बुरा हो, इससे तो कहीं अच्छा है कि तू नेक बन, भले ही लोग तुझे बुरा कहें।
'यदि लोग मेरी प्रशंसा करते हों और मुझमें बुराइयाँ भरी हों तो मुझे लोगों से डरना चाहिए। बेशक मैं अपने पड़ोसियों की आँखों से छिपा हुआ, हूँ लेकिन मेरे अन्दर-बाहर की सब बातें अल्लाह तो जानता है।'
मैंने अपना दरवाज़ा आदमियों के आने-जाने के लिए बन्द कर रखा है, ताकि वे मेरी बुराइयों को न फैला सकें, लेकिन दरवाज़ा बन्द करने से भी क्या फ़ाइदा ख़ुदा तो छिपी और खुली हुई सारी बातों को जानता है।
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.