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कहानी -28-सन्तोष- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

कहानी -28-सन्तोष- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

MORE BYसादी शीराज़ी

    एक पहलवान के बारे में कहा जाता है कि वह मुसीबत में फंस गया और पैसों से तंग हो गया। खाना मिलने से उसकी जान पर बनी।

    वह अपने वालिद के पास गया और बोला, मेरा इरादा बाहर जाने का है। शायद वहाँ मेहनत-मशक़्क़त करके कुछ कमा सकूँ।

    'जब तक कुछ काम किया जाए, आदमी की बुज़ुर्गी और हुनर का पता नहीं चलता।'

    अगर की पहपान आग में जलाने से और मुश्क की पहचान पत्थ पर घिसने से होती है।”

    वालिद ने कहा, बेटा, ना-मुम्किन का ख़याल छोड़ दे और सब्र से काम ले। घर के कोने में महफ़ूज़ बैठे रहना अच्छा है, क्योंकि आ’लिमों ने कहा है, दौलत कोशिश करने से नहीं मिलती उसके लिए सब्र करना पड़ता है।

    'अपनी दिलेरी से कोई अमीर नहीं बनता। अंधी आँखों वाले का भौंहों पर ख़िज़ाब लगाना बे-कार है।

    'चाहे तेरे हर बाल में सौ-सौ हुनर हों लेकिन तेरी क़िस्मत साथ दे तो सब बेकार है।

    जवान ने फिर कहा, अब्बा जान! सफ़र के बहुत-से फ़ाइदे हैं। सौदागरी से फाइदा होता है, मन बहलाव होता है, अनोखी चीज़ें देखने को मिलती हैं, नई-नई बातें सुनने में मज़ा आता है, नए-नए शहरों की सैर करने को मिलती है, दोस्तों से बातचीत करके अदब और सलीक़ा आता है --आदि-आदि।'

    'जब तक तू घर की दुकान में गिरवी रखा रहेगा तू कभी संसार के अनुभव नहीं प्राप्त कर सकता और आदमी बन सकता है। इससे पहले कि तू दुनिया से चल बसे, जा! दुनिया की सैर कर।'

    वालिद ने कहा, बेटा! जो तूने बताया वह ठीक है कि सफ़र से कई फ़ाइदे हैं। लेकिन सफ़र करना सिर्फ़ पाँच क़िस्म के लोगों के लिए फ़ाइदे-मन्द है।

    एक तो वे लोग जो सौदागर हैं और जिनके पास धन-दौलत के अ’लावा चुस्त और फुर्तीले नौकर-चाकर भी हों।

    जिसके पास ख़ूब दौलत है वह चाहे जंगल में रहे चाहे पहाड़ों पर उसके लिए कहीं कोई तकलीफ़ नहीं। वह कहीं भी मुसाफ़िर नहीं होता। जहाँ भी डेरे लगा दिए वहीं दरबार लग गया, लेकिन ग़रीब आदमी अपने ही देश में मुसाफ़िर की तरह होता है। उसे कोई नहीं जानता।

    दूसरे वे लोग सफ़र से लाभ उठाते हैं जो आ’लिम हैं और अपनी मीठी बोल-चाल और योग्यता के कारण जहाँ भी जाते हैं इ’ज़्ज़त पाते हैं। लोग उनकी ख़िदमत के लिए दौड़े चले आते हैं।

    'आ’लिम सोने की तरह होता है। सोने की हर जगह क़द्र होती है। जिसमें बुद्धि नहीं है उसका कहीं आदर नहीं होता। परदेस में तो कोई कोड़ी को भी नहीं पूछता।'

    तीसरी क़िस्म उन हसीनों की है जिन्हें देखकर ज़ाहिद का दिल मचलने लगे। बुज़ुर्गों ने कहा है कि 'थोड़ा हुस्न बहुत दौलत से बढ़कर है।' लोग यह भी कहते हैं, 'हसीन मुखड़ा टूटे हुए दिलों के लिए मरहम का काम करता है और वह बन्द दरवाज़ों की कुंजी है।'

    'जब मैंने मोर के ख़ूबसूरत पंख क़ुरान शरीफ़ के पन्नों के बीच रखे हुए देखे तो एक मोर से कहा, 'तेरी यह क़द्र मेरे मन में अधिक है।' मोर बोला 'चुप रह! जो हुस्न रखता है वह जहाँ भी जाता है लोग उसे हाथों-हाथ लेते हैं।'

    चौथे लोग वे हैं जो अच्छे गायक हैं। जिनका गला दाऊद जैसा हो और जो अपने संगीत के असर से पानी को बहने से और परिन्दों को उड़ने से रोक दे। इस गुण से वह लोगों का मन मोह लेगा। हुनर की क़द्र करने वाले लोग ऐसे व्यक्ति को अपने पास रखना पसन्द करेंगे और हर तरह से उसकी ख़िदमत करने को तैयार रहेंगे।

    'मेरे कानो में संगीत का आनन्द समाया हुआ है। यह किसने सितार छेड़ दिया?'

    'सुन्दर आवाज़ सुन्दर चेहरे से भी ज़ियादा अच्छी लगती है क्योंकि संगीत तो मन का आनन्द और आत्मा का भोजन है।'

    पाँचवे लोग वे हैं जो हाथ-पाँव से मेहनत कर के रोटी कमा सके ताकि अपमानित होकर किसी के आगे हाथ फैलाना पड़े। बुजुर्गों ने कहा है, रूई धुनने वाला अपने शहर से बाहर भी चला जाए तो भूखा नहीं मरेगा, लेकिन यदि नीमأरोज़ का बादशाह अपने देश के बाहर कहीं मुसीबत में पड़ जाए तो भूखा सोएगा।

    वालिद बोला, बेटे! ये सब गुण जिनका मैंने वर्णन किया, सफ़र में काम आते हैं। ज़िन्दगी में इन से सुख मिलता है। जिस व्यक्ति में ये गुण नहीं होंगे वह मारा-मारा फिरेगा और कोई उसकी बात तक पूछेगा।

    'जब मनुष्य का दुर्भाग्य उसके पीछे पड़ा हो तो संसार के लोग उसे उलटी राय ही देते हैं।

    जिस कबूतर की मौत उस पर मंडरा रही हो और जिसकी क़िस्मत में फिर से घोंसले में आना बना हो वह स्वयं ही जाल और दाने की ओर चला जाता है।

    बेटे ने कहा, अब्बा जान विद्वानों के मत का विरोध कैसे करू? उन्होंने कहा है कि रोज़ी यद्यपि तक़दीर के लिखे के अनुसार मिलती हैं फिर भी उसे पाने के लिए प्रयत्न करना ज़रूरी है। तक़दीर में मुसीबत ही लिखी हो, तो भी इसे टालने का उपाय तो करना ही चाहिए। इस वक़्त तो मुझमें ताक़त है। मैं मस्त हाथी से लड़ सकता हूँ और शेर से पंजा लड़ा सकता हूँ। इसलिए उचित यही है कि मैं सफ़र में जाऊँ। मैं तंगी और ग़रीबी को अब और नहीं रह सकता।

    'इन्सान अपनी अवक़ात और अपने दर्जे से गिर जाए तो फिर उसे किस बात का डर है? तमाम दुनिया उसका घर है। वह जहाँ चाहे रहे।'

    'हर अमीर रात को लौटकर अपने घर जाता है लेकिन फ़क़ीर को जहाँ रात हो जाए, वहीं उसका घर है।'

    यह कह कर उसने अपने वालिद से विदा’ माँगी। बेटे को जाते हए देख कर वह अपने मन से कह रहा था, 'जब हुनर-मन्द का नसीब उसका साथ नहीं देता, तो वह कहीं भी चला जाए, कोई उसे नहीं जानेगा।'

    जवान चलते-चलते एक ऐसी जगह पर पहुँचा जहाँ नदी का पानी इतना तेज बह रहा था कि पत्थर से पत्थर टकरा रहे थे और पानी का शोर कोसों दूर तक जा रहा था। नदी इतनी भयानक थी कि उसके अन्दर मुर्ग़ाबियाँ भी नहीं टिक पा रही थीं। उसकी वजह धार चक्की के पाट को भी वहाँ ले जाती।

    नदी के किनारे उसने कुछ आदमियों की भीड़ देखी। हर कोई अपना अपना सामान बाँधे और एक-एक कराजा हाथ में लिए कश्ती में बैठा था।

    इस जवान के पास देने को कुछ नहीं था। उसने उन मुसाफ़िरों से मिन्नत की, उनकी ता'रीफ़ भी की लेकिन किसी ने उसकी सहायता की। नुक़्सान भी उसके पास से हंसता हुआ आगे बढ़ गया और बोला, बिना पैसे के तू किसी पर ज़ोर नहीं चला सकता और अगर तेरे पास पैसा है तो किसी पर ज़ोर दिखाने की ज़रूत ही नहीं। सिर्फ़ जिस्म के बल पर तू नदी पार नहीं कर सकता। दस आदमियों की ताक़त रखने से क्या होता है? बस एक आदमी का किराया दे दे और कश्ती में बैठ।

    नुक़्सान के जाने से उस जवान का दिल भर आया। वो उसे इस बात की सज़ा देना चाहता था लेकिन कोई चारा नहीं था। देखते ही देखते कश्ती रवाना हो गई।

    उसने नुक़्सान को आवाज़ दी और कहा, मैं जो कपड़े पहने हुए हूँ अगर इन्हें किराए के बदले में ले तो मैं दे सकता हूँ।

    नुक़्सान को लालच गया और उसने कश्ती लौटा ली।

    'लालच अ’क़्लमन्द आदमी की भी आँख सी देता है। परिन्दे और मछली को लालच ही जाल में फंसाता है।'

    जैसे ही जवान का हाथ नुक़्सान की दाढ़ी और गिरेबान तक पहुँचा, उसने उसे अपनी तरफ़ खींच लिया और बेधड़क मारने लगा। नुक़्सान को बचाने के लिए एक मुसाफ़िर कश्ती से उतरकर आया भी लेकिन ख़तरा देखा तो पीठ फेरकर चल दिया। सबने यही उचित समझा कि जवान के साथ समझौता कर लिया जाए और उससे कश्ती का किराया लिया जाए।

    जब तू लड़ाई-झगड़ा देखे तो धैर्य से काम ले। नम्रता झगड़ा समाप्त कर देती है।'

    हम मीठी ज़बान और दया तथा प्रेम के व्यवहार से हाथी को भी एक अकेले बाल से बांध सकते हैं।'

    जहाँ झगड़ा देखो, नर्मी से काम लो। तेज़ तलवार से नर्म रेशम को नहीं काटा जा सकता।

    लोगों ने जवान के पैरों पर गिरकर उससे मु’आफ़ी माँगी, उसकी ख़ुशामद की, उसके सिर-आँखों को चूमा और सामान सहित उसे कश्ती में ले आए। कश्ती फिर से रवाना हुई।

    अब वे लोग पत्थर के एक खम्भे के पास पहुँचे। यह यूनान को किसी पुरानी इ’मारत का खंडहर था जो पानी में पड़ा रह गया था। यहाँ पहुँच कर नुक़्सान ने कहा, क़श्ती में कुछ ख़राबी गई है। आप लोगों में जो सबसे ज़ियादा ताक़तवर हो वह इस खम्भे पर चढ़ जाए और कश्ती की रस्सी पकड़े रहे। मैं इस बीच कश्ती ठीक कर लूँगा।

    जवान को अपनी ताक़त पर बड़ा घमंड था। वह इस काम के लिए राज़ी हो गया। उसने यह नहीं सोचा कि नुक़्सान उसका दुश्मन बन चुका है। आ’लिमों ने कहा है कि अगर तू ने किसी का दिल दुखाया है और फिर उसे सौ बार आराम पहुंचाया है फिर भी उसे एक रंज पहुंचाने से मुतमइन नहीं होना चाहिए क्योंकि तीर की नोक ज़ख़्म से निकल आती है मगर दिल में तकलीफ़ ज़रूर रह जाती है।एक सिपाही ने जम'-दार से कितनी सच्ची बात कही कि जब तूने दुश्मन को सताया है, तो उससे वेख़बर रह।'

    'यदि तेरे हाथों किसी का दिल दुखा है तो भी बे-फ़िक्र बैठ। तेरा भी दिल दुखाया जाएगा।'

    क़िले’ की दीवार पर पत्थर फेंक। हो सकता है कि जवाब में अन्दर से भी पत्थर आएँ।'

    जैसे ही जवान अपनी कलाई पर रस्सी लपेट कर खम्भे के ऊपर चढ़ने लगा, नुक़्सान ने उसके हाथ से रस्सी खींच ली और कश्ती चला दी। जवान बे-चारा हैरान रह गया।दो दिन तक भूखा-प्यासा खम्भे पर लटका रहा। तीसरे दिन उस पर नींद सवार हुई और वह पानी में गिर पड़ा। एक दिन और एक रात पानी में बहते-बहते वह किसी तरह किनारे पर जा लगा।

    अभी उसकी कुछ ज़िन्दगी बाक़ी थी। वह पेड़ों की पत्तियाँ और पास की जड़ें खाकर अपनी भूख मिटाने लगा। उसमें थोड़ी-सी ताक़त गई तब वह जंगल की तरफ़ चल दिया।

    भूख और प्यास से निढाल होता हुआ वह एक कुँवें पर पहुँचा। वहाँ भी लोग एक अद्धी लेकर पानी पिला रहे थे। जवान के पास तो अद्धी थी नहीं, उसने अपनी लाचारी बतलाते हुए पानी माँगा। किसी को उस पर रहम नहीं आया। उसे फिर से ग़ुस्सा गया और उसने कुछ आदमियों को पीट डाला। शोर सुनकर वहाँ भीड़ इकठ्ठा हो गई। सबने मिलकर जवान को उद्दंडता की सज़ा देने के लिए मारते-मारते जख़्मी कर डाला।

    मच्छर जब बहुत हो जाते हैं तो वे हाथी को भी मार डालते हैं यद्यपि हाथी में बड़ी शक्ति है।'

    'चीटियाँ जब संगठित हो जाती हैं तो शेर की भी खाल उतार लेती हैं।'

    विवश होकर जवान एक क़ाफ़िले के पीछे हो लिया। रात को वे ऐसी जगह पहुँचे जहाँ चोरों का बहुत डर था। क़ाफ़िले के लोग डर के मारे काँप रहे थे। उनकी यह दशा देखकर जवान उनसे बोला, घबराइए नहीं। आप लोगों के बीच एक मैं ऐसा जवान हूँ कि अकेले पचास आदमियों का डटकर मुकाबला कर सकता हूँ। फिर आपमें से कुछ लोग भी तो मेरी मदद करेंगे ही।

    उसकी इन बातों से क़ाफ़िले के लोगों को कुछ तसल्ली मिली। उन्हें ऐसे आदमी का साथ पाकर बड़ी ख़ुशी हई। उन्होंने उसे कुछ खाने-पीने को दिया। जवान तो भूखा था ही। उसके पेट में आग लग रही थी। खाना खाया तो जान में जान आई। वह निश्चिन्त हो कर सो गया।

    क़ाफ़िले में एक अनुभवी बूढा भी था। वह बोला, साथियो! चोरों से ज़ियादा तो मुझे तुम्हारे साथी से डर लगता है। लोग एक कहानी कहा करते हैं कि एक देहाती के पास कुछ दिरम इकट्ठे हो गए थे। उसे चोरों के डर से रातभर नींद नहीं आती थी। वह अपने एक मित्र को बुला लाया। उसने सोचा कि एक से दो हो जाएँ तो अकेले घर में डर लगे। उसका मित्र कई दिनों तक उसके साथ रहा। जैसे ही उसे दिरमों का पता चला वह रात में उन्हें चुराकर भाग गया। सुब्ह बेचारा देहाती खाली हाथ था। किसी ने उससे पूछा, 'क्या तेरा धन चोर ले गए? वह बोला, 'नहीं, ख़ुदा की क़सम! मेरा साथी ले गया।

    जब तक मैं किसी मित्र के स्वभाव को अच्छी तरह पहचान नहीं लेता, मैं उसके साथ निश्चिन्त नहीं बैठ सकता।'

    'उस दुश्मन के दाँत बहुत तेज़ होते हैं, जो लोगों को दोस्त दिखाई देता है।

    बूढ़े ने आगे कहा, तुम्हें क्या मा’लूम? हो सकता है कि यह चोरों के गिरोह का आदमी हो और चालाकी से हमारे साथ घुल-मिल गया हो। मौक़ा’ पाकर यह उन्हें ख़बर कर देगा और हम लूट लिए जाएँगे। उचित तो यही मा’लूम पड़ता है कि इसको यही सोता हुआ छोड़कर हम लोग चल दें। आओ, झट-पट अपना सामान बाँध लें।'

    क़ाफ़िले वालों को बूढे की नसीहत पसन्द आई। उनके दिल में उस पहलवान का डर बैठ गया। उन्होंने अपना-अपना सामान उठाया और उसे यहीं सोता हुआ छोड़कर चले गए।

    जब सूरज निकला और उसके मुंह पर धूप गई तो जवान की आँख खुल गई। उसने देखा कि क़ाफ़िला जा चुका था। बे-चारा इधर-उधर भटका लेकिन किसी रास्ते से मंज़िल तक पहुँच सका।

    वह भूखा-प्यासा ख़ाक में लोटने लगा और मौत का इन्तिज़ार करने लगा। वह कह रहा था, अब कौन है जो मुझसे बातें करेगा? क़ाफ़िले वालों के ऊँट चले गए। मुसाफ़िर का तो मुसाफ़िर ही दोस्त होता है।

    मुसाफ़िरों पर वही व्यक्ति ज़ुल्म करता है, जो स्वयं सफ़र में अधिक रहा हो।'

    एक शहज़ादा शिकार खेलते-खेलते उधर पहुँचा। वह जवान के पास ही खड़ा उसकी बातें सुन रहा था। उसने देखा कि जवान सुडौल और सुन्दर है। जाने कैसे इस मुसीबत में पड़ गया।

    उसने जवान से पूछा, तू कहाँ का रहने वाला है और यहाँ कैसे गया?

    जवान ने संक्षेप में अपनी कहानी कह सुनाई। शहज़ादे को उस पर दया गई। उसने उसे कपड़ों का एक जोड़ा बख्श दिया। एक नौकर भी साथ कर दिया जो जवान को उसके घर पहुँचा आया।

    उसका वालिद उसे देखकर बहुत ख़ुश हुआ। उसके घर लौट आने पर उसने ख़ुदा का शुक्र अदा किया। रात में उसने वालिद को सारा हाल कह सुनाया। वह बोला, बेटा! जाने से पहले मैंने तुझ से नहीं कहा था कि---

    ख़ाली हाथ आदमी की हिम्मत का बाज़ू बंधा होता है और उसकी बहादुरी का पंजा टूटा होता है।

    उस ख़ाली हाथ सिपाही ने क्या अच्छी बात कही कि जौ भर सोना सत्तर मन बल से अधिक होता है।

    जवान ने कहा, अब्बा जान, यह बात तो माननी पड़ेगी कि जब तक आप मेहनत नहीं करेंगे, आपको दौलत नहीं मिल सकती, जब तक आप जान को जोखम में नहीं डालेंगे, दुश्मन को जीत नहीं सकेंगे और जब तक आप खेत में दाना नहीं बिखेरेंगे, खलिहान कहाँ से उठा लेंगे? आपने देखा नहीं कि थोड़ी-सी तकलीफ़ उठाकर मैंने आराम कितना पाया जो डंक मैंने खाया उसको सह कर शहद कितना इकठ्ठा कर लिया!

    'यद्यपि तू तक़दीर के सहारे रोज़ी नहीं पा सकता, फिर भी रोज़ी की तलाश में तुझे आलस नहीं करना चाहिए।'

    'गोता-ख़ोर यदि मगरमच्छ के जबड़े से डरेगा तो वह कभी भी मोती नहीं पा सकता।'

    'चक्की का निचला पाट जो नहीं घूमता अपने ऊपर भारी बोझ को बर्दाश्त करता है।

    'खूँख़्वार शेर भी यदि अपनी गुफा के अन्दर ही पड़ा रहे तो क्या खाएगा? सुस्त बाज़ यदि शिकार पकड़े तो उसे खाना कौन देगा?'

    'तुम घर बैठे ही शिकार खेलना चाहोगे तो तुम्हारे हाथ-पांव भी मकड़ी की तरह बंध जाएगे।

    वालिद ने कहा, इस बार क़िस्मत ने साथ दे दिया कि तेरे पास एक दौलत-मन्द गया और उसने तेरी दीन दशा देखकर तेरी सहायता कर दी। ऐसा संयोग हमेशा नहीं होता है। जो बातें संयोगवश हो जाती हैं उनके आधार पर कोई नीति नहीं बनाई जा सकती।

    शिकारी हर बार गीदड़ मार कर घर नहीं लौटता। कभी उसे चीता भी फाड़ खाता है।'

    कहते हैं कि फ़ारस के एक बादशाह के पास एक बेश-क़ीमती नगीना था जो उसकी अंगूठी में जड़ा हुआ था। एक दिन वह कुछ लोगों के साथ शीराज़ की ई’दगाह में सैर करने गया। वहाँ उसने अ'ज़्द के गुम्बद पर अंगूठी रखवा दी और यह घोषणा करवा दी कि जो कोई इस अंगूठी के छल्ले में होकर तीर निकाल दे उसे अंगठी इनआ’म में दे दी जाएगी।

    बादशाह के साथ उस समय लगभग चार सौ मशहूर तीर-अंदाज़ थे। सबने अपनी-अपनी क़िस्मत आज़माई लेकिन किसी का तीर निशाने पर नहीं बैठा।

    एक छोटा-सा बच्चा छत पर खेल रहा था। वह अपनी नन्हीं-सी कमान से हर तरफ़ तीर फेंक रहा था। संयोग की बात है कि तेज़ हवा के शोर ने उसका तीर अंगठी के छल्ले के बीच से निकाल दिया। बच्चे को इनआ’म दिया गया और पोशाक बख़्शी गई और अंगूठी उसे मिल गई।

    लोग कहते हैं कि इसके बा’द उस लड़के ने अपना तीर-कमान जला दिया। लोगों ने पूछा, तूने ऐसा क्यों किया? उसने उत्तर दिया, ताकि मेरी पहली इ’ज़्ज़त बर-क़रार रहे।।

    'कभी ऐसा होता है कि विद्वानों की नसीहत से भी काम नहीं बनता और कभी ऐसा होता है कि नादान बच्चे से भी निशाने पर तीर लग जाता है।

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