कहानी -31-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी
नौशेरवाँ के वज़ीर राज्य को किसी समस्या पर उसके साथ विचार विमर्श कर रहे थे। सभी अपनी-अपनी राय दे रहे थे। बादशाह ने भी अपना विचार रखा।
उसके एक वजीर बुज़ुरचमहर को केवल बादशाह की राय पसन्द आई।
दूसरे वजीरों ने उसे अलग ले जाकर पूछा, इतने अ’क़्लमन्द लोगों के मुक़ाबले में तूने बादशाह की ही राय क्यों पसन्द की?
उसने उत्तर दिया, और कारण तो मैं बता नहीं सकता। हाँ, एक बात ज़रूर है, और वह यह कि दूसरों की राय का ठीक बैठना-न-बैठना ख़ुदा के हाथ की बात है। बादशाह की राय मान लेना ही अच्छा है। यदि वह ग़लत भी बैठी तो उसकी हाँ में हाँ मिलाने के कारण मैं उसके क्रोध से तो बचा रहूँगा।
अ’क़्लमन्द लोगों ने कहा है, 'बादशाह की राय के ख़िलाफ़ राय देना अपने ही ख़ून से हाथ धोना है। यदि बादशाह दिन को कहे कि रात है तो हमें कह देना चाहिए, हाँ हुज़ूर, यह रहा चाँद और यह रही सुरैया।
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