कहानी -32-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी
एक मक्कार ने ढोंग रचा और सय्यदों की तरह बाल बाँध लिए। वह लोगों से कहने लगा कि वह अ’लवी है और हिजाज़ के एक क़ाफ़िले के साथ हज करके लौटा है। उसने बादशाह की प्रशंसा में एक क़सीदा पढ़कर मुनाया और कहा कि यह उसी ने लिखा है। बादशाह प्रभावित हुआ और उसने उसे बहुत-सा इनआ’म दिया और सम्मान भी।
कुछ समय तक बादशाह की कृपा उस पर बनी रही लेकिन अन्त में बादशाह के एक मुसाहिब ने उसकी पोल खोल दी। उसने बताया, मैं इसी वर्ष समुद्री यात्रा करके लौटा हूँ और मैंने इस व्यक्ति को बक़रीद के अवसर पर बसरा में देखा था। यह तो हाजी नहीं है।
एक अन्य दरबारी ने कहा, मैं भी इसे पहचानता हूँ। इसका पिता भलातियाँ में एक ई’साई था।
अब तो सबको मा’लूम हो गया कि वह व्यक्ति न किसी अच्छे वंश का मुसलमान था और न कोई शाइ’र। उसके पढ़े हुए अश'आर अनवरी के दीवान में मिल गए। बादशाह उसके झूठ बोलने से बहुत नाराज़ हुआ। उसने हुक्म दे दिया कि उसे मार-मारकर शहर से बाहर निकाल दिया जाए।
वह व्यक्ति गिड़गिड़ाकर बोला, ऐ दुनिया के मालिक, बादशाह! मुझे एक बात और कहनी है। हुक्म हो तो कहूँ। यदि वह सच न निकले, तो आप मुझे जो चाहें सज़ा दें।
बादशाह ने पूछा, वह क्या बात है?
उसने कहा, ग़रीब छाछ बेचने वाला, जब आपके सामने छाछ लाता है, तो उसमें एक चमचा दही होता है और दो प्याले पानी। यदि सच्ची बात आप सुनना चाहते हैं, तो मुझसे सुनिए। जिसने जितनी अधिक दुनिया देखी है, वह उतना ही अधिक झूठ बोलता है ।
बादशाह को हंसी आ गई और वह बोला, 'शायद इससे ज़ियादा सच्ची बात तूने उ’म्र भर कभी नहीं कही होगी।
उसने हुक्म दिया, “इस शख़्स की जो भी इच्छा हो वह पूरी कर दी जाए और इसे हंसी-ख़ुशी विदा’ कर दिया जाए।
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