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कहानी -39-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

कहानी -39-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

MORE BYसादी शीराज़ी

    ख़लीफ़ा हारून-अल-रशीद ने जब मिस्र का मुल्क जीतकर उस पर क़ब्ज़ा कर लिया तो उसे अपने एक मा’मूली-से ग़ुलाम को सौंप दिया। वह वहाँ के हारे हुए बादशाह फ़िरऔ’न को ही उसका मुल्क लौटा सकता था किन्तु उसने ऐसा नहीं क्यिा। कारण यह था कि फ़िरऔ’न को इतना अहंकार हो गया था कि वह ईश्वर होने का दा’वा करने लग गया था। जिस ग़ुलाम को यह मुल्क दे दिया गया था वह एक हब्शी था और उसका नाम था ख़सीब।

    लोग कहते हैं कि इस ग़ुलाम के पास अ’क़्ल बिलकुल नहीं थी। लोग उसकी बातों पर हंसते थे।

    एक बार कुछ किसान उसके पास फ़रियाद लेकर आए कि उन्होंने नील नदी के किनारे खेती की, लेकिन वर्षा और बाढ के कारण उसकी फ़स्ल बर्बाद हो गई।

    हब्शी बोला, तुम्हें ऊन की खेती करनी चाहिए थी। यह कभी तबाह होती।

    एक बुज़ुर्ग ने यह बात सुनकर कहा, दर-अस्ल अ’क़्ल और रोज़ी का कोई तअ’ल्लुक नहीं। यदि रोज़ी अ’क़्ल के बढ़ने के साथ ही बढ़ती तो बे-वक़ूफों से ज़ियादा और कौन दुखी होता? लेकिन रोज़ी पहुंचाने वाला बे-वक़ूफ़ों की इस तरह रोज़ी पहुँचाता है कि उसे देखकर अ’क़्लमन्द भी हैरत में पड़ जाते हैं। नसीबा और दौलत अ’क़्ल और हुनर से नहीं मिलते। ये चीज़ें तो अल्लाह के करम से ही मिलती हैं।

    'कीमिया बनाने वाला बे-चारा मेहनत करते-करते मर गया और बे-वक़ूफ़ को वीराने में ख़ज़ाना मिल गया।'

    जिनमें कोई अ’क़्ल और तमीज़ नहीं थी उन्हें तो ऊँचा दर्जा मिल गया; लेकिन अ’क़्लमन्द नीचा और ज़लील रहा।

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