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कहानी -4-परवरिश- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

कहानी -4-परवरिश- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

MORE BYसादी शीराज़ी

    पश्चिम के मुल्क में मैंने एक मदरसे में ऐसे उस्ताद को देखा जो बे-हद चिड़चिड़ा बच्चों को सताने वाला और कम-अ’क़्ल था। मुसलमान उसे देख कर बहुत दुखी होते। उसका क़ुरआन पढ़ना भी लोगों को बुरा लगता। उसके सामने किसी की तो हँसने की हिम्मत होती थी और बात करने की। कभी वह किसी के चाँदी जैसे गाल पर तमाँचा मार देता और कभी किसी की बिल्लौर जैसी पिंडली को शिकंजे में कस देता। ख़ुलासा यह कि जब लोगों को उसकी ज़्यादतियों का पता चला तो उन्होंने उसे मार-मारकर वहाँ से निकाल दिया:

    उस मदरसे में एक नेक आदमी पढ़ाने के लिए रख दिया गया। यह आदमी परहेज़गार था। इसकी आ’दत बहुत अच्छी थी। अ’क़्लमन्द इतना था कि बिना ज़रूरत बात भी करता और कभी किसी से ऐसी बात नहीं कहता था जिससे उसे तकलीफ़ पहुँचती। बच्चों के दिल में पहले उस्ताद का जो डर था वह निकल गया। नये उस्ताद को उन्होंने फ़रिश्ते की तरह नेक पाया।

    नतीजा यह हुआ कि हर लड़का शैतान बन गया। उस्ताद की शराफ़त का फ़ाइदा उठाकर उन्होंने पिछला पढ़ा-लिखा भी सब भुला दिया। वे ज़ियादातर अपना वक़्त खेल में गुज़ारने लगे। वे इतने ऊधमी हो गए थे कि अपनी बिना लिखी तख़्तियाँ वे एक-दूसरे के सिर पर मारकर तोड़ डालते।

    'पढ़ाने वाला उस्ताद जब बच्चों पर सख़्ती करना बन्द कर देता है तो बच्चे बाज़ार में जाकर मदारी बन जाते हैं

    दो हफ़्ते बा’द मैं उस मदरसे की तरफ़ से गुज़रा। मैंने देखा कि अब वे लोग पहले वाले उस्ताद को मनाकर वापस ले आए थे। मैंने लाहौल पढ़ा और लोगों से पूछा कि इस शैतान को फिर से फ़रिश्तों का उस्ताद क्यों बना दिया गया?

    एक मस्ख़रे और तजुर्बेकार बूढ़े ने मुझे जवाब दिया, एक बादशाह ने अपने बेटे को मकतब में बैठाया और उसकी बग़ल में चाँदी की तख़्ती दे दी, उसके हाथों सोने के पानी से उस तख़्ती पर लिखवाया गया-'उस्ताद का ज़ुल्म बाप की मुहब्बत से बेहतर है।'

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