Font by Mehr Nastaliq Web

कहानी -4-सन्तोष- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

कहानी -4-सन्तोष- गुलिस्तान-ए-सा’दी

सादी शीराज़ी

MORE BYसादी शीराज़ी

    अ’जम के बादशाह ने एक होशियार हकीम हज़रत मुहम्मद साहब की ख़िदमत में अ'रब भेजा। वह वहाँ कई वर्ष रहा किन्तु एक भी मरीज़ उससे दवा लेने नहीं आया। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। वह मुहम्मद साहब के पास गया और कहने लगा, मुझे तो यहाँ आप लोगों के इ’लाज के लिए भेजा गया था लेकिन अभी तक किसी ने मेरी तरफ़ ध्यान ही नहीं दिया अपनी सेवा का कोई अवसर दिया।

    मुहम्मद साहब ने फरमाया, यहाँ का क़ाइ’दा यह है कि लोग जब तक भूख से मजबूर नहीं हो जाते कुछ खाते ही नहीं और जब खाने बैठते हैं तो भूख रहते ही खाने से हाथ खींच लेते हैं।

    हकीम बोला, तन्दुरुस्ती का राज़ यही है। वह उनके सामने ज़मीन चूमकर आदाब बजा लाया और चला गया।

    'बुद्धिमान मनुष्य उस समय तक बोलना शुरू’ नहीं करता है और उस समय तक भोजन की तरफ़ अपना हाथ नहीं बढ़ाता है जब तक कि वह यह देख नहीं लेता कि उसके बोलने से नुक़सान हो रहा है या उसके भोजन करन से उसकी जान पर बनी है। फलस्वरूप उसके बोल बुद्धिमानी से भरे हुए होते हैं और उसका भोजन स्वास्थ्यदायक होता है।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY
    बोलिए