कहानी -5-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी
मैंने एक सिपाही को उग़लमश(एक राजा) के दरवाज़े पर पहरा लगाते देखा। वह नौजवान बड़ा अ’क़्लमन्द था। हर काम बड़ी होशियारी से करता। बचपन से ही हर बात से उसकी समझदारी प्रकट हाती थी। उसके चेहरे को देखकर ही यह कहा जा सकता था कि एक दिन वह महान व्यक्ति बनेगा।
बादशाह को यह नौजवान बहुत प्रिय लगने लगा। रूप भी आकर्षक और बुद्धि भी प्रखर, फिर और चाहिए भी क्या? किसी ने ठीक ही कहा है, 'मनुष्य की महानता उसकी बुद्धि पर निर्भर होती है न कि उसकी आयु पर।'
'मनुष्य के धनवान होने की ख़याति उसके उदारतापूर्वक ख़र्च करने पर होती है न कि धन जोड़-जोड़कर रखने से।'
बादशाह ने इस नौजवान की पदोन्नति कर दी। यह देखकर उसके साथी उससे ईर्ष्या करने लगे। उन्होंने षड्यन्त्र रचकर उसे मरवा डालने का प्रयत्न किया, किन्तु जब अल्लाह की कृपा हो, तो शत्रु क्या कर सकता है।
बादशाह ने नौजवान से पूछा, ये लोग तुझसे दुश्मनी क्यों रखते हैं?'
नौजवान ने उत्तर दिया, 'अल्लाह आपका साया मेरे सिर पर बनाए रखे। मैंने और सब लोगों को तो ख़ुश कर लिया है लेकिन इन जलने वालों का क्या करूँ? ये तो तभी ख़ुश हो सकते हैं जब मुझे नौकरी से निकाल दिया जाए और मेरा सब कुछ मुझसे छीन लिया जाए। यदि आपका संरक्षण मुझे प्राप्त है तो मुझे किसी बात की चिन्ता नहीं।'
'मैं यह तो कर सकता हूँ कि किसी का दिल न दुखाऊँ; किन्तु इन लोगों का क्या करूँ, जो बिना बात जले-मरे जाते हैं?'
'ओ जलने वाले दुश्मन! तुझे भी इस दु:ख से तभी छुटकारा मिल सकता है, जब तू मर जाए। मौत के अतिरिक्त और कोई भी तुझे इस दुःख से मुक्त नहीं कर सकता।'
'अभागे जलने वाले सुखी मनुष्य की बरबादी की कामना करते हैं, स्वयं परिश्रम करके सुखी और समृद्ध होना नहीं चाहते!'
'यदि रतौंध की बीमारी से पीड़ित मनुष्य उज्ज्वल सूर्य के प्रकाश को देखना पसन्द नहीं करता, तो उसमें सूर्य का क्या दोष है? सूर्य के लोप हो जाने से कहीं अच्छा है कि ऐसे हज़ारों रतौंध से पीड़ित मनुष्य निपट अंधे हो जाएँ।'
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