कहानी -6-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी
अ'जम के एक बादशाह के सम्बन्ध में यह कहा जाता है कि वह बड़ा ज़ालिम था। वह प्रजा का माल ख़ूब लूटता-खसोटता था और लोगों के साथ बड़ा अन्याय करता था। परिणाम यह हुआ कि लोग उसका राज्य छोड़-छोड़कर भागने लगे। जब राज्य की जनसंख्या बहुत कम रह गई और राज-कोप की आय भी घट गई तो वह राज्य कमज़ोर हो गया। ऐसी दशा में पड़ोस के शत्रु उस पर हमला करने की सोचने लगे।
'जो व्यक्ति यह चाहता है कि लोग मुसीबत में उसका साथ दें, उसे चाहिए कि ख़ुशहाली के दिनों में वह उन्हें उदारता-पूर्वक दान दे।'
'यदि तू अपने स्वामिभक्त सेवक के प्रति उदार न होगा तो वह भी तुझे छोड़कर चला जाएगा। दूसरों के साथ भलाई कर, ताकि पराए भी अपने बन जाएँ।'
एक दिन बादशाह के दरबार में शाहनामा पढ़ा जा रहा था। संदर्भ यह था कि बादशाह ज़ह्हाक के राज्य का विघटन कैसे हुआ और फ़रीदून कैसे बादशाह बना।
इस वृत्तान्त को सुनकर एक वज़ीर ने बादशाह से पूछा, हुज़ूर, आपने इस कहानी से क्या नतीजा निकाला?
बादशाह ने कहा, मेरी समझ में बादशाह की शक्ति उसकी प्रजा है। प्रजा ही फ़रीदून के पक्ष में इकट्ठी हो गई। उसने उसके हाथ मज़बूत कर दिए जिसके फलस्वरूप उसे राज्य मिल गया।
वज़ीर बोला, ऐ बादशाह! जब प्रजा के सहयोग से राज्य प्राप्त किया जा सकता है तो तू अपनी प्रजा को राज्य से क्यों भगा रहा है? क्या शासन करने का तेरा इरादा नहीं है? तुझे चाहिए कि तू सैनिकों को उदारता से धन दे। अगर सैनिक ही न रहेंगे तो तू शासन किसकी सहायता से करेगा?
बादशाह ने पूछा, सेना तथा प्रजा को कैसे संगठित किया जा सकता है।
वज़ीर ने उत्तर दिया, बादशाह को उदारतापूर्वक धन देना चाहिए जिससे लोग उसका साथ दें। उसे न्याय करना चाहिए जिससे प्रजा उसके संरक्षण में निर्भर जीवन बिता सके। दुर्भाग्य से तू ऐसा नहीं करता।
ज़ालिम बादशाह हुकूमत नहीं कर सकता। भेड़िए से चरवाहे का काम नहीं लिया जा सकता। जिस बादशाह ने ज़ुल्म करना शुरू' कर दिया, उसने तो मानो अपने शासन की जड़ ही उखाड़ दी।'
बुद्धिमान वज़ीर की नसीहत बादशाह को बुरी लगी। उसे क्रोध आ गया और उसने वज़ीर को क़ैदख़ाने में डलवा दिया।
थोडे ही समय के पश्चात् बादशाह के चचेरे भाई उसके ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए। उन्होंने उससे युद्ध करने के लिए बहुत बड़ी सेना तैयार कर ली। वास्तव में वह राज्य भी उन्हीं के पिता का था। अब उन्होंने उसे वापस लेने का पक्का इरादा कर लिया। प्रजा के जो लोग बादशाह के विरुद्ध थे वे सब उसके शत्रुओं से जा मिले। बादशाह युद्ध में हार गया और शासन उसके हाथ से निकल गया।
'जो बादशाह कमज़ोरों पर ज़ुल्म करता है, वे लोग भी मुसीबत में उसका साथ नहीं देते, उलटे उसके कट्टर दुश्मन बन जाते हैं।'
'तू प्रजा को ख़ुश रख और निर्भय होकर शासन कर, न्यायप्रिय राजा की प्रजा उसके लिए सेना का काम देती है।'
'दीन-दुखियों पर सदैव दया कर और समय के कुचक्र से सावधान रह।'
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