कहानी -7-राजनीति- गुलिस्तान-ए-सा’दी
कोई एक बादशाह अ’जम के एक ग़ुलाम के साथ नाव में सवार हुआ। उस ग़ुलाम ने इससे पहले कभी नदी में सफ़र नहीं किया था। नाव जब चलने लगी तो वह भयभीत हो गया। वह रोने-चिल्लाने लगा और डर के मारे काँपने लगा।बादशाह के मनोविनोद में जब विघ्न पड़ा तो उसे क्रोध आ गया। लोगों ने ग़ुलाम को चुप कराने की कोशिश की। जब वह किसी तरह चुप न हुआ तो एक अनुभवी व्यक्ति ने बादशाह से कहा, हुज़ूर, यदि हुक्म दें तो मैं इसे शान्त कर दूँ।
बादशाह की आज्ञा पाते ही उसने नौकरों से कहकर ग़ुलाम को नदी में फिकवा दिया। जब वह चार-छ: डुबकियाँ खा चुका, तो लोगों ने उसे बालों से पकड़कर नाव पर खींच लिया। डरा हुआ ग़ुलाम बेचारा चुपचाप एक कोने में बैठ गया। अब वह बिलकुल शान्त था।
बादशाह को इस बात पर आश्चर्य हुआ। उसने पूछा, यह कैसे हो गया?
बुद्धिमान मनुष्य ने उत्तर दिया, इस ग़ुलाम ने पानी में डूबने की तकलीफ़ पहले कभी नहीं उठाई थी। इसीलिए यह नाव में सुरक्षित वैठने के आराम को नहीं समझता था। अब इसकी समझ में आ गया। आराम की क़ीमत वही जानता है जो मुसीबत में रह चुका हो।'
'ऐ इन्सान! तेरा पेट तो भरा है, इसीलिए तुझे जौ की रोटी अच्छी नहीं लगती, परन्तु जो चीज़ तुझे बुरी लगती है, मुझे अच्छी लगती है।'
'बहिश्त की हूँरों के लिए आ’राफ़ दोज़ख़ है। तू दोज़ख़ वालों से पूछ—उनके लिए तो आ’राफ़ ही बहिश्त है।'
'जिस शख़्स का मा’शूक़ उसकी बग़ल में है, उसमें और उस शख़्स में, बहुत फ़र्क़ है, जिसकी आँखें इन्तिज़ार में दरवाज़े पर लगी हुई हैं।
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