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नह्वी और कश्तीबान (दफ़्तर-ए-अव्वल)

रूमी

नह्वी और कश्तीबान (दफ़्तर-ए-अव्वल)

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    रोचक तथ्य

    अनुवाद: मिर्ज़ा निज़ाम शाह लबीब

    एक नह्वी कश्ती में बैठा और ख़ुद-परस्ती से कश्तीबान से मुख़ातिब हो कर कहने लगा कि तुमने कुछ नह्व पढ़ी है। कश्तीबान ने कहा नहीं, नह्वी ने कहा कि अफ़्सोस तूने अपनी आधी उम्र ज़ाए’ की। कशतीबान मारे ग़ुस्से के पेच-ओ-ताब खाने लगा मगर उस वक़्त ख़ामोश रहा।

    इत्तिफ़ाक़न हवा के झक्कड़ ने कश्ती को एक भंवर में ला डाला। कश्तीबान ने नह्वी से ब- आवाज़-ए-बुलंद कहा कि हज़रत आपको तैरना भी आता है या नहीं। नह्वी ने कहा नहीं मुझे तैरना नहीं आता। कश्तीबान ने कहा कि नह्वी तेरी सारी उ’म्र ज़ाए’ गई क्योंकि कश्ती अब गिर्दाब में डूबने वाली है।

    इस कहानी की ग़रज़ ये है कि आदमी को किसी एक इ’ल्म या फ़न में कमाल हासिल हो जाने पर शेख़ी ना करनी चाहिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हिकायात-ए-रूमी हिस्सा-1 (पृष्ठ 38)
    • रचनाकार :मौलाना रूमी
    • प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (हिन्द) (1945)

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