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Sufinama

कुंतो कंज़न मख़्फ़ियन से ये बयाँ पैदा हुआ

आशिक़ हैदराबादी

कुंतो कंज़न मख़्फ़ियन से ये बयाँ पैदा हुआ

आशिक़ हैदराबादी

कुंतो कंज़न मख़्फ़ियन से ये बयाँ पैदा हुआ

जिस्म में महमूद के ख़ुद जान-ए-जाँ पैदा हुआ

शान में आया है जिस के साफ़ लौ-लाक लमा

वो शहंशाह-ए-ज़मीन-ओ-आसमाँ पैदा हुआ

नुक़्ता-ए-सिर्र-ए-वुजूद-ओ-’इल्म और नूर-ओ-शुहूद

'इश्क़ बन कर दाइरा के दरमियाँ पैदा हुआ

खुल गई मुझ पर हक़ीक़त से मोहम्मद की ये रम्ज़

ज़ात से महमूद की सारा जहाँ पैदा हुआ

शश जिहत के आईनों में 'अक्स है जिस शख़्स का

ख़ुद मकीं की शक्ल में वो ला-मकाँ पैदा हुआ

तुख़्म-ए-हस्ती से जो निकले बन के हम उल्टे शजर

गुलशन आ'याँ का अपने बाग़बाँ पैदा हुआ

देख लो महमूद की है ख़ुद मोहम्मद का शबीह

आज फिर अहमद सू-ए-हिन्दोस्ताँ पैदा हुआ

बन गया वाजिब से मुम्किन 'इश्क़ में जिस का वुजूद

वो वुजूद बे-निशान ख़ुद बा-निशाँ पैदा हुआ

सूरत इज्माल वहाँ की बन के तफ़्सील गई

था जो बातिन में वही ज़ाहिर में यहाँ पैदा हुआ

गंज-ए-मख़्फ़ी में सदा बे-सौत जिस की सुनते थे

ख़ुद ज़बाँ बन के वो यार-ए-बे-ज़बाँ पैदा हुआ

अपनी उल्टी पुतलियों से देख लो उस का मक़ाम

अब तसव्वुर का हमारे दीदबाँ पैदा हुआ

हर नफ़स आती है कानों में जो आवाज़-ए-जरस

आज गुजराती अमीर-ए-कारवाँ पैदा हुआ

गया चूँ-ओ-चरा में गंज-ए-मख़्फ़ी से जो यहाँ

सिर्र-ए-ज़ात-ए-बे-चगों का रम्ज़-दाँ पैदा हुआ

सिर्र-ए-बातिन की हक़ीक़त पूछिए उस पीर से

ये मियाँ महमूद अच्छा ग़ैब-दाँ पैदा हुआ

शह नसीरुद्दीं चराग़-ए-देहलवी के नूर से

चिश्तियों अपना चराग़-ए-दूदमाँ पैदा हुआ

क्यूँ रौशन हो शबिस्ताँ कमालुद्दीं कि आज

उन के घर में आफ़ताब-ए-ख़ानदाँ पैदा हुआ

'आशिक़-ए-ख़्वाजा मु’ईनुद्दीं मुबारक हो तुझे

पीर तेरा नूर-ए-चश्म-ए-ख़्वाजगाँ पैदा हुआ

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