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ऐ सनम तुझ पे हैं क़ुर्बां गुल-ओ-आईना-ओ-शमा

ग़ुलाम इमाम शहीद

ऐ सनम तुझ पे हैं क़ुर्बां गुल-ओ-आईना-ओ-शमा

ग़ुलाम इमाम शहीद

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    सनम तुझ पे हैं क़ुर्बां गुल-ओ-आईना-ओ-शमा

    हैं तिरे रुख़ से पशेमाँ गुल-ओ-आईना-ओ-शमा

    देख ख़ंदाँ भी हैं हैराँ भी हैं गिर्यां भी हैं

    देख कर सूरत-ए-जानाँ गुल-ओ-आईना-ओ-शमा

    बुलबुल-ओ-तूती-ओ-परवाना नहीं चाहते हैं

    तेरे होते हुए जाँ गुल-ओ-आईना-ओ-शमा

    'इश्क़ में तेरे हुए जामा से बाहर ऐसे

    कि फिरा करते हैं 'उर्यां गुल-ओ-आईना-ओ-शमा

    रंग और नूर-ए-सफ़ा लाए हैं तेरे घर से

    हैं तिरे बंदा-ए-एहसाँ गुल-ओ-आईना-ओ-शमा

    साफ़ कहता हूँ कहो किस के क़लम से निकला

    इस तरह दस्त-ओ-गरेबाँ गुल-ओ-आईना-ओ-शमा

    मेरी किल्क-ओ-ग़ज़ल-ओ-सफ़्हा-ए-दीवाँ को 'शहीद'

    कहते हैं सारे सुख़न-दाँ गुल-ओ-आईना-ओ-शमा

    स्रोत :
    • पुस्तक : नात के चन्द शोरा-ए-मोतक़ीदीन (पृष्ठ 33)

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