भाई बंद कोई संघ न लागे
रोचक तथ्य
نغمہ قوالی رجوع بحضرت مخدوم اشرف جہاں گیر قدس سرہٗ ہوکر کہا گیا۔
भाई बंद कोई संघ न लागे
प्रेम पंथ पग दीनी रे
बलिहारी मैं अशरफ़ पिया के
जिन बहियाँ गह लेनी रे
ना मोरे मिया ना मोरे बाबा
न कोऊ संघ न साथी रे
मैं तो चेरी अशरफ़ पिया की
वे मोरे जन्म सँघाती रे
अशरफ़ अशरफ़ धूम मचावन
अशरफ़ का गुण गावन रे
अशरफ़ पर मैं तन-मन वारूँ
उन की दास कहावन रे
पीर निज़ाम रंगीले पिया का
अशरफ़ रंग मनाए रे
जोई आवे सोई चूँदर रंगावे
बे-रंग कोई न जाए रे
अशरफ़ के दरबार पुकारें
आओ भिकारी आओ रे
गंज शकर का गंज खुला है
जोई माँगो सोई पाओ रे
ख़्वाजा कुत्बुद्दीन ख़्वाजा मु'ईनुद्दीन
आज भए हैं बराती रे
सब सखीन मिल मंगल गावें
आज पिया रंग राती रे
अशरफ़ बन के बैठ अशरफ़ी
आज ब्याह रचा है रे
चिश्त नगर में धूम मची है
अशरफ़ दूला बना है रे
निज़ाम पिया के अशरफ़ प्यारे
क़ुत्ब फ़रीद के राज-दुलारे
आज फँसी मंजधार में नया
पार करो मोरे खेवन-हारे
देस-देस में ढूँढ फिरी रे
अब लागी हूँ चरण तुम्हारे
काहू की मोहे आस नहीं है
बैरी हों गए मीत हमारे
दरस पाय बौराए 'अशरफ़ी'
अशरफ़ पिया पर तन-मन वारे
- पुस्तक : तहाइफ़-ए-अशरफ़ी (पृष्ठ 124)
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