बनायी मुझ बेनवा की बिगड़ी नसीब मेरा जगा दिया
तेरे करम के निसार तूने मुझे भी जीना सिखा दिया
बदल गई मेरे दिल की दुनिया, अता ने वो मरतबा दिया
करम की ऐसी निगाह डाली, गदा को सुल्ताँ बना दिया
करम के साए में हमको रक्खा, कभी हिरासाँ न हम हुए
हमारे सर पे जो धूप आयी तो अपना दामन बढ़ा दिया
ये इनकी बंदा नवाज़ियाँ हैं, जो मुझ पे ऐसा करम किया
बना के अपना फ़क़ीर मुझको ग़म-ए-जहाँ से छुड़ा दिया
ग़रीब दर-दर भटक रहे थे, कहीं न दिल को सुकूं मिला
करम किया तूने अपने दर को, हमारा काबा बना दिया
वुज़ू किया मैंने आंसुओं से, नमाज़ मेरी अदा हुई
मिला जो नक़्श-ए-क़दम तुम्हारा तो मैंने सर को झुका दिया
किसी को दर से न ख़ाली टाला, हर इक सवाली को भीक दी
ग़रीब आए जो आस्ताँ पर, करम का दरिया बहा दिया
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नुसरत फ़तेह अली ख़ान
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