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मैं किसी सूरत में हूँ गर्दिश है मेरे साथ में

बेदम शाह वारसी

मैं किसी सूरत में हूँ गर्दिश है मेरे साथ में

बेदम शाह वारसी

MORE BYबेदम शाह वारसी

    मैं किसी सूरत में हूँ गर्दिश है मेरे साथ में

    बज़्म-ए-हस्ती में जो आया दौर-ए-साग़र हो गया

    सौ बहारें उस मसर्रत उस तबस्सुम के निसार

    आज दामान-ए-सहर फूलों की चादर हो गया

    दो ’अदम में एक हस्ती वो भी नज़्र-ए-नीस्ती

    मेरा होना भी होने के बराबर हो गया

    उस ने रग रग को सिखा दीं 'इश्क़ में बे-चैनियाँ

    क़ल्ब-ए-मुज़्तर इक ’अज़ाब-ए-जान मुज़्तर हो गया

    बरहमी की कोई हद भी मिज़ाज-ए-ज़ुल्फ़-ए-यार

    क्या बिगड़ जाने में तो मेरा मुक़द्दर हो गया

    होते होते हो गई बरहम वो 'बेदम' बज़्म-ए-नाज़

    देखते ही देखते सामान-ए-महशर हो ग्या

    स्रोत :
    • पुस्तक : Uthte Uthte wo Naqaab-e-Rukh Utha kar Chal Diye (पृष्ठ 26)

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