हरम और दैर के कतबे वो देखे जिस को फ़ुर्सत है
हरम और दैर के कतबे वो देखे जिस को फ़ुर्सत है
यहाँ हद्द-ए-नज़र तक सिर्फ़ उ'न्वान-ए-मोहब्बत है
परस्तार-ए-मोहब्बत की मोहब्बत ही शरीअ'त है
किसी को याद कर के आह कर लेना इ'बादत है
जहाँ वो हैं वहाँ दिल है जहाँ वो हैं वहाँ सब कुछ
मगर पहले मक़ाम-ए-दिल समझने की ज़रूरत है
बिगड़ना आदमी का और बनना फिर बिगड़ जाना
ये किस के हाथ में नब्ज़-ए-मिज़ाज-ए-आदमियत है
मक़ाम-ए-इ'श्क़ को हर आदमी 'सीमाब' क्या समझे
ये है एक मर्तबा जो मावरा-ए-आदमियत है
- पुस्तक : सिल्सिला-ए-वारिस्या के मख़सूस शोरा-ए-कराम
- रचनाकार : डॉक्टर कबीरुद्दीन ख़ान वारसी
- प्रकाशन : एरम पिरिंट्रस,दरियापुर, पटना (2018)
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