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Sufinama

दिल हम ने सनम को दिया नज़्राना समझ कर

अज्ञात

दिल हम ने सनम को दिया नज़्राना समझ कर

अज्ञात

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    दिल हम ने सनम को दिया नज़्राना समझ कर

    ज़ालिम ने जलाया हमें परवाना समझ कर

    मैं तालिब-ए-बोसा हुआ ज़ुल्फ़ों का जो उन के

    ज़ंजीर से बंधवा दिया दीवाना समझ कर

    समझ तो मिरे सामने मुँह खोल के बैठे

    फिर कर लिया पर्दा हमें बेगाना समझ कर

    साक़ी मैं तिरे सदक़े मय-ए-वस्ल पिला दे

    आया हूँ बहुत दूर से मय-ख़ाना समझ कर

    मंसूर इसी वास्ते कहता था अनल-हक़

    सूली पे चढ़ाया उसे दीवाना समझ कर

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