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Sufinama

जब मैं न देखता हूँ तो देखा करूँ तुझे

ज़हीन शाह ताजी

जब मैं न देखता हूँ तो देखा करूँ तुझे

ज़हीन शाह ताजी

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    जब मैं देखता हूँ तो देखा करूँ तुझे

    बुत-ख़ाना-ए-ख़याल में पूजा करूँ तुझे

    घबरा गया हूँ दैर-ओ-हरम की क़ुयूद से

    क्या आ’लम-ए-ख़याल में पूजा करूँ तुझे

    हाँ क्यूँ रहे शरीक-ए-इ'बादत ख़याल-ए-ग़ैर

    क्या मैं नहीं रहा हूँ कि सज्दा करूँ तुझे

    फिर क्या रहेगा वलवला-ए-शौक़-ए-दीद में

    वो नज़र कि सिर्फ़ तमाशा करूँ तुझे

    लग जाएँ तेरे हुस्न की शोहरत को चार-चाँद

    रुस्वा मुझे किया है तो रुस्वा करूँ तुझे

    जब है वफ़ूर-ए-हुस्न क़ुसूर-ए-निगाह क्या

    ए'तिराफ़-ए-कम-निगही क्या करूँ तुझे

    तेरी निगाह से तुझे देखा करूँ 'ज़हीन'

    अपनी निगाह से भी छुपाया करूँ तुझे

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    फरीद अयाज़

    फरीद अयाज़

    स्रोत :
    • पुस्तक : आयात-ए-जमाल (पृष्ठ 417)

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