काफ़ी - आवो सखी सहेलियो मिल मसलत गोईए
काफ़ी - आवो सखी सहेलियो मिल मसलत गोईए
आपो आपनी गल नूँ भर हंझू रोईए
खडे लालच लग्यां मैं उमर गवाई
कदे न पूनी हथ लै इक तन्दड़ी पाई
चरखा मेरा रंगला बह घाड़ु घड़ायआ
इवें पुराना हो गया विच कुछे धर्या
कतन वल न आइयो न चघन कसीदा
कदे न बैठी निठ के करि नीवा दीदा
नाल कुचज्जिया बैठ के कोई चज न लीता
उ'मर गवायी खेड विच कोई कंम न कीता
कराँ कपाहों वटियाँ ते कणकों बूरा
लाडां विच न होया कोई कंमड़ा पूरा
कतन वेल न आया न चकी चुला
विच गरूरी डुब के मैं सभ किछ भुला
कोई कंम न सिख्या जे सह नूँ भावां
वेला हथ न आंवदा हुन पछोतावां
है नी अम्बड़ी मेरीए मैं रोई हावे
उह सहु मेरा सोहणा मैनूं नज़र न आवे
मैं भरवासा आद दा नित ड्रदी आही
झाती इक न पाइआ मैं भठ व्याही
आपने मंदे हाल नूँ न मिले सहु देइ न ढोई
जांञी माञी बैठ के रल मसलत चाई
झबदे कढो डोलड़ी हुन ढिल ना काई
पल दी ढिल न लांवदे उह खरे स्याणे
हुन की होंदा आख्या रो पछोताने
इक वल रोवे अम्बड़ी ते बाबल मेरा
अचणचेते आया सानूँ जंगल डेरा
चीक चेहाड़ा पै ग्या विच रंग महली
रोवन जारी हो रेहा हुन सभनी वली
रल मिल आप सहेलियाँ मैनूं पकड़ चलायआ
जोड़ा पकड़ सहानड़ा मेरे गल पायआ
डोली मेरी रंगली लै आगे आए
बाहोँ पकड़ चलायआ लै बाहर धाए
कढ लै चले डोलड़ी किस करे पुकारा
होइ निमानी मैं चली कोई वस न चारा
अम्बड़ बाबल त्रै भैने ते सभे सहियाँ
इक इकली छड के मुड़ घर नूँ गईआं
हुन क्यूँ के बैठ्यो गल पी प्यारे
उह गुणवंता बहुत है असीं औगुणहारे
ना कुछ दाज ना रूप है ना गुन है पले
आपने सिर पर आ बणी असीं इक इकल्ले
जिनी गुनी सहु रावीए मनूँ सो गुन नाहीं
रो वे जिया मेर्या कर खलियाँ बाहीं
ना हथ बधा गानना ना वटना लायआ
जेवर पैरीं पाय के मैं ठमक न चली
कूड़ी गलीं लग के मैं साह थो भुली
ना नक बेसर पाईआ ना कन्नी झमके
ना सिर माँग भराईआ ना मथे दमके
ना गल हार हमेल हेठ ना मुँदरी छल्ला
आहर तती दा हो रेहा कोई ढंग अवल्ला
बाजू बंद ना बंधिया नहीं कंगन पाए
वखत वेहाना की कराँ नी मेरीए माए
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